टीचर ने बनाया अनोखा स्कूल, जहाँ बच्चों को मिलती है मुफ्त शिक्षा और अभिभावकों को रोज़गार!

कौन अपने बच्चे को पढ़ा लिखा कर अफसर नहीं बनाना चाहता। कौन है जो सड़क पर बिलखते बच्चों को देख कर दुःख नहीं मनाता। पूछना नहीं चाहता अगर पाल नहीं सकते तो पैदा क्यों किया। बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो सवाल पूछने की जगह जवाब बनने का प्रयास करते हैं। चाहते हैं इस गड्ढे को जल्द से जल्द भरा जा सके। जिसका एक ही जरिया है। वो है शिक्षा।
ऐसा ही एक प्रयास है ”यत्न”। ‘यत्न’ को हरियाणा राज्य के गुरुग्राम में रहने वाली शालिनी कपूर ने शुरू किया है। जिसकी नींव 2015 में रखी गई थी। अध्यापिका होने के कारण उनका बच्चों की सभी जरूरतों पर ध्यान है। ‘यत्न’ के ‘यत्न’ स्कूल में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया भी जाता है। एक समय का भोजन दिया जाता है। उनकी हेल्थ का भी ध्यान रखा जाता है। खाने को नई-नई चीजें लाकर दी जाती हैं और जरूरत पड़ने पर कपड़े भी मुहैया कराए जाते हैं। शालिनी का मानना है कि जब तक मौलिक जरूरतें पूरी नहीं होंगी, तब तक बच्चे शिक्षा का महत्व नहीं समझेंगे।
बातचीत के दौरान शालिनी जी बताती हैं कि इस संस्कार की नींव बचपन से ही उनमें बोई गई थी। उनका पैतृक घर लखनऊ में था और उनके दादाजी ने घर का एक कोना समाज को दान कर दिया था, जहां कई बच्चे पढ़ने आते थे।
यही बचपन की सीख थी जो उन्हें याद आ गई। अपने घर में काम करने वाले लोगों के बच्चों के लिए उनके मन में चिंता की भावना जागी। फिर क्या था शालिनी ने सोच लिया, सिर्फ पैसों की कमी के कारण इन बच्चों का भविष्य खराब नहीं होने दूंगी। शुरुआत हुई यत्न की। ‘यत्न’ को शालिनी ने अपने घर से शुरू किया था, जिसमें बच्चों की संख्या 6 से 7 थी। ये उनके आस पास काम करने वालों के बच्चे थे। आज उनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। आज उनके साथ कुछ लोग और जुड़ गए हैं।
‘यत्न’ का उद्देश्य इन बच्चों की अंधेरी जिंदगियों में न केवल शिक्षा की रोशनी लाना है बल्कि उनकी छुपी हुई प्रतिभाओं को भी उभारने की कोशिश यहाँ की जाती है। वो सारी बातें कुछ ही घंटों में सिखा देने की कोशिश होती है, जिनके बारे में वो अपनी जिंदगियों के बाकी घंटों में अनभिज्ञ ही रह जाते हैं। अच्छे संस्कार, साफ-सफाई की आदतें, बातचीत करने का तौर-तरीका इन सबके बारे में भी ‘यत्न’ के स्टडी सेंटर में बारीकी से बताया जाता है।
शुरुआत में उन्हें बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जैसे बड़े भाई-बहनों को अपने छोटे भाई-बहनों को संभालना पड़ता था। शालिनी ने माता-पिता से आग्रह किया कि उन बच्चों को भी स्कूल भेजें। ताकि उनकी नींव मजबूत बने। उसके अलावा भी समाज के साथ उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी। अब जाकर उनके कर्म का फल उन्हें मिलने लगा है। लोग समझने लगे हैं शिक्षा का महत्व।
इस स्टडी सेंटर के बच्चे बड़े होनहार हैं। इनमें से कोई पुलिस अफसर बनना चाहता है तो कोई शिक्षक। बच्चों के अभिभावकों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए भी शालिनी प्रयत्न कर रही हैं। यत्न के बैनर तले शालिनी प्लांटेबल पेंसिल्स का प्रोडक्शन करवाती हैं, जिसमें हर पेंसिल के अंत छोर पर किसी न किसी पौधे का बीज होता है। इसके अलावा त्योहारों पर वह राखियां व कार्ड्स भी बनवाती हैं। इसके अलावा मंदिरों में चढ़ चुके फूलों से होली के रंग भी यत्न की तरफ से बनवाए जाते हैं। ये सब बच्चों के अभिभावक बनाते हैं, जिससे उन्हें थोड़ी कमाई होती रहती है।
शालिनी हम सबके लिए प्रेरणा हैं, जो बताती हैं कि अगर चाहो तो क्या नहीं हो सकता। विश्वास दिलाती हैं कि बदलाव के लिए उठाया गया हर कदम बेमानी नहीं है। आप भी इस बदलाव का हिस्सा बनें। आप के द्वारा उठाया गया एक कदम किसी बच्चे का भविष्य बदल सकता है।
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]