गृहिणी से बनीं किसान, फिर शुरू किया वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस, कश्मीर तक जाती है इनकी बनाई खाद

गृहिणी से बनीं किसान, फिर शुरू किया वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस, कश्मीर तक जाती है इनकी बनाई खाद

खेती के साथ-साथ आय बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश की दर्शना शर्मा ने, आज से 20 साल पहले वर्मीकम्पोस्ट बनाना सीखा था। आज वह केंचुए और इससे बनी खाद बेचकर ही बढ़िया मुनाफा कमा रही हैं। इतना ही नहीं देशभर से लोग इनके पास खाद बनाने की ट्रेनिंग लेने के लिए भी आते हैं।

हालांकि उनकी शुरुआत खेती से ही हुई थी, लेकिन आज वह मुख्य रूप से खाद का बिज़नेस ही कर रही हैं। दर्शना हमेशा से एक गृहिणी रही हैं। उनके पति लोकेश्वर दयाल शर्मा एयरफ़ोर्स में काम करते थे।

लेकिन रिटायर होने के बाद, उन्होंने बागपत (उत्तरप्रदेश) के मितली गांव में अपनी चार एकड़ पुश्तैनी जमीन पर खेती करने का फैसला किया। उन दिनों कटाई और बुआई के समय दर्शना भी उनकी मदद किया करती थीं। बाद में गांव के महिलाओं के एक सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़कर दर्शना ने वर्मीकम्पोस्ट का काम करना शुरू किया।

कैसे सीखा खाद बनाना?

दर्शना कहती हैं, “साल 2002 में वर्ल्ड बैंक के Diversified Agriculture Support Project (DASP) के तहत गांव की महिलाओं और पुरुषों के समूह बनाए गए थे। जिसका उदेश्य, खेती के साथ खाद बनाना, पशुपालन जैसे कामों से किसानों को जोड़ना था। उस समय गांव की 16 महिलाओं के समूह का अध्यक्ष मुझे बनाया गया था। प्रोजेक्ट के तहत हर समूह को दो किलो केचुआ भी दिया गया था। जिसे हमें खाद बनाकर इस्तेमाल करना था। प्रोजेक्ट के तहत हमें बिल्कुल सामान्य जानकारी दी गई थी।”

हालांकि उसे समय उन्हें केंचुए से खाद बनना आता नहीं था, न ही गांव में कोई किसान इसका उपयोग करता था। प्रोजेक्ट के तहत मिले दो किलो केंचुए को कोई भी लेने को तैयार नहीं था। लेकिन दर्शना और उनके पति को लगा की इसे सीखना चाहिए। उस समय उन्होंने वर्ड बैंक की टीम के मार्गदर्शन और किताबों में पढ़कर इसे बनाना शुरू किया। दर्शना ने बताया कि उस दौरान उन्होंने BSNL का ब्रॉडबैंड कनेक्शन लिया था ताकि वह इंटरनेट से भी वर्मीकम्पोस्ट बनाना सीख सके।

उन्होंने इसका उपयोग अपने खेत में किया और देखा कि आर्गेनिक फार्मिंग करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि यह नया व्यवसाय था लेकिन दर्शना एक दूरदर्शी सोच वाली महिला हैं इसलिए उन्हें यकीन था कि आने वाले दिनों में लोग इसे जरूर अपनाएंगे।

वर्मीकम्पोस्ट के फायदों को समझकर ही उन्होंने और दो क्विंटल केंचुए खरीदे और अपने पति के साथ मिलकर बड़े स्तर पर इसका व्यवसाय करके का सोचा।

वह कहती हैं, “हम देश भर में होने वाले कृषि मेले में भाग लेने जाते। लखनऊ में कृषि केन्द्र में समय पर सेमिनार में भाग लेते। मेरे पति मार्केटिंग का काम सँभालते थे जबकि मैं खाद बनाने का काम देखती थी। उनके जाने के बाद मेरा बेटा मार्केटिंग का काम देख रहा हैं।”

उस समय कोई इतने बड़े स्तर पर वर्मीकम्पोस्ट नहीं बनाता था। तकरीबन पांच बार वर्ल्ड बैंक की एग्रीकल्चर टीम उनके कम्पोस्ट प्लांट का दौरा करने आ चुकी है।

बेटे और बहु के साथ मिलकर करती हैं काम

दर्शना के बेटे प्रशांत शर्मा ने इंटरमीडियट की पढ़ाई के बाद अपने माता-पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया। प्रशांत कहते हैं, “चूँकि मुझे पढ़ने में ज्यादा रूचि नहीं थी इसलिए मेरे पिता ने समझाया कि खेती और कम्पोस्ट का काम ठीक से सीख लो और हमें मदद करो।”

पिता की मृत्यु के बाद वह मार्केटिंग का सारा काम संभाल रहे हैं। वहीं उनकी पत्नी खेतों में काम करती हैं। वे दो एकड़ ज़मीन पर खाद बनाने का काम करते हैं। जबकि बाकि की दो एकड़ जमीन पर परिवार के लिए फल-सब्जियां और अनाज उगाते हैं।

दर्शना को उनके इन प्रयासों के लिए चौधरी चरण सिंह किसान अवॉर्ड समेत, जिला और राज्य स्तर पर भी कई अवार्ड्स मिल चुके हैं। एक व्यवसायिक खानदान से ताल्लुक रखनेवाली दर्शना ने पति का साथ देने के अलावा अपनी अलग पहचान भी बनाई है।

समय के साथ धीरे-धीरे उन्होंने अपने यूनिट में नई-नई तकनीक से कम्पोस्टिंग करना शुरू किया। उनके पास फ़िलहाल इंडोर और आउटडोर दोनों सेटअप में खाद बनाने की सुविधाएं मौजूद हैं।

देशभर के 600 किसानों को दे चुकी हैं ट्रेनिंग

साल 2007 में उन्होंने सरकारी टेंडर पर दूसरे किसानों को भी ट्रेनिंग देने का काम किया था, जिसके लिए वह किसानों को केंचुए देती थीं और इससे खाद बनाने की तकनीक भी सिखाती थीं।

वह कहती हैं, “हमने देखा कि कई किसान यह काम सीखना चाहते हैं। तब हमने खुद के स्तर पर भी कई किसानों को ट्रेनिंग देना शुरू किया।”

दर्शना के फार्म में बनी ज्यादातर वर्मीकम्पोस्ट, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जाती हैं। जम्मू में फूलों की खेती के लिए वर्मीकम्पोस्ट बेहद उपयोगी होती है, इसलिए इसकी डिमांड वहां काफी ज्यादा है।

अच्छी गुणवत्ता वाली खाद के लिए अपनी अलग पहचान बना चुकीं दर्शना के पास देश के कई राज्यों से लोग खाद बनाना सीखने आते हैं। कई लोग ट्रेनिंग लेने के बाद, उनसे केंचुए खरीदकर खुद का काम भी शुरू करते हैं। वेस्ट बंगाल (झारग्राम) के सुमित खडुआ बताते हैं कि उन्हें दो साल पहले इंटरनेट के माध्यम से ही दर्शना के वर्मीकम्पोस्ट यूनिट के बारे में पता चला।

सुमित कहते हैं, “हमने उनसे Eisenia fetida किस्म के केंचुए खरीदे थे, जिसके बाद मेरे फार्म पर काम करनेवाले दो लड़कों को मैंने वहां ट्रेनिंग के लिए भेजा। ट्रेनिंग के बाद, हमने बड़े स्तर पर वर्मीकम्पोस्टिंग का काम करना शुरू किया। दर्शना जी और प्रशांत आज भी समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं, जैसे- केचुओं की संख्या कैसे बढ़ाएं या वातावरण में बदलाव के समय केचुओं का ध्यान कैसे रखना है?”

उनके यूनिट में सालभर में 3000 टन वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन होता है। दर्शना कहती हैं, “कम्पोस्ट और केंचुए की बिक्री से सालाना 30 से 40 लाख का टर्नओवर आराम से हो जाता है।”

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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