वो बहादुर जवान जो निहत्थी आतंकियों से भिड़ गई, 11 गोलियां खाकर की संसद की रक्षा

ये संसद में किसी आम दिन की तरह ही था. इन गाड़ियों को देखकर संसद में तैनात सुरक्षाकर्मियों को यही लगेगा कि ये किसी VVIP की गाड़ी है. ग़ौरतलब है कि एक जवान को दाल में कुछ काला होने का आभास हुआ.
ये महिला थीं सीआरपीएफ़ कॉन्स्टेबल, कमलेश कुमारी जो संसद भवन के एंट्री गेट नंबर 11 पर तैनात थीं.
ये वो दौर था जब संसद भवन में तैनात महिला कॉन्सेबल्स को कोई हथियार नहीं दिये जाते थे. कमलेश कुमारी के पास भी सिर्फ़ एक वॉकी टॉकी थी.
गेट से अंदर घुसकर Parliament और Home Ministry के स्टिकर वाली गाड़ी न तो रुकी और न ही उनकी रफ़्तार कम हुई बल्कि गाड़ी की स्पीड बहुत तेज़ हो गई.
कमलेश कुमारी ने किया गाड़ी का पीछा
शक के आधार पर कमलेश कुमारी ने अपनी सुरक्षा की चिंता किए बग़ैर सिर्फ़ वॉकी टॉकी से लैस होकर उस गाड़ी का पीछा किया.
कमलेश कुमारी ने देखा कि एम्बेसेडर से 5 हथियारबंद लोग उतेर और बिल्डिंग की तरफ़ बढ़ने लगे.
सीआरपीएफ़ देश की पहली पैरा मिलिट्री फ़ोर्स है जिसमें महिलाओं का बटालियन बनाया गया. लेकिन इन जवानों को हथियार नहीं दिए गए. अगर कमलेश कुमारी के पास उस दिन हथियार होते तो आज इतिहास शायद कुछ और होता.
सीआरपीएफ़ अधिकारियों को किया सूचित
अगर कमलेश कुमारी के पास हथियार होते तो शायद वो वहीं पर जबावी कार्रवाई करतीं. देश की इस जांबाज़ महिला ने सबसे पहले आतंकियों को देखा और अन्य जवानों, अधिकारियों को वॉकी टॉकी से सूचित किया. कमलेश कुमारी ने चिल्लाकर लोगों को इत्तिला किया कि आतंकी दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र के संसद को क्षति पहुंचाने के लिए आ धमके हैं.
ये कमलेश कुमारी की तीव्रता से लिए निर्णय की ही नतीजा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का संसद एक बहुत बड़ी क्षति से बच गया.
कमलेश कुमारी के शोर ने आतंकियों को भी किया अलर्ट
सीआरपीएफ़ की बहादुर जवान दौड़कर कॉन्सटेबल सुखविंदर सिंह के पास पहुंची. कॉनस्टेबल सुखविंदर सिंह भी गेट नंबर 11 पर ही तैनात थे. ग़ौरतलब है कि कमलेश की आवाज़ ने जवानों और आतंकियों दोनों को ही चौकन्ना कर दिया था.
आतंकियों ने कमलेश पर अंधाधुंध गोलीबारी की और निहत्थी कमलेश कुमारी के पास जबावी कार्रवाई करने का कोई साधन नहीं था. 11 गोलियों ने कमलेश कुमारी का शरीर छलनी कर दिया.
कमलेश कुमारी नहीं होती तो जाती कई जानें
कमलेश कुमारी 2001 एक संसद हमले की पहली शहीद हैं लेकिन उनकी शहादत बेकार नहीं गई. सीआरपीएफ़ के जवानों ने आतंकियों को मुंहतोड़ जबाव दिया. कमलेश कुमारी की बदौलत आतंकी संसद भवन की मुख्य इमारत के अंदर घुस नहीं पाए. इस वीरांगना की बदौलत देश के रक्षा मंत्री, गृह मंत्री समेत कई बड़े नेताओं की जान बची.
कमलेश कुमारी को 2002 में अशोक चक्र से सम्मानित किया गया.
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]