सरकारी नौकरी छोड़ कर शुरू की जैविक खेती, अब अपने आर्गेनिक फार्म से लाखों रुपए कमा रही हैं नबनीता

अपनी मिट्टी और खेतों से कैसे प्यार किया जाता है ये कोई असम की इस नर्स से सीखे. असम के जोरहाट जिले की रहने वाली नबनीता दास एक किसान परिवार से संबंध रखती हैं. यही वजह है कि शुरू से उनका लगाव अपने खेतों और किसानी से रहा है. नबनीता ने सहायक नर्स के रूप में ट्रेनिंग ली है. लेकिन वह कभी भी अपने प्रोफेशन से उतना प्रेम नहीं कर पाईं जितना प्रेम उन्हें कृषि से रहा.
जब वह एक नर्स के रूप में सरकारी अस्पताल में काम करती थीं तो अपनी ड्यूटी पर आते जाते वह लहलहाते हरे खेतों को देखती. ये खेत उन्हें हमेशा से आकर्षित करते थे. आखिरकार नबनीता ने 2010 में अपनी नर्सिंग की नौकरी छोड़ दी. इसके बाद नबनीता ने पूरे मन से जैविक खेती शुरू की. उनकी मेहनत ने ऐसा रंग दिखाया कि अब वह अपने क्षेत्र की एक प्रतिष्ठित प्रगतिशील किसान हैं. इसके साथ ही वह एक ऑर्गेनिक फार्म की मालिक भी हैं.
खेती के लिए नबनीता ने काफी समय दिया. उन्होंने 2014 में इसके संबंध में असम के कृषि विभाग द्वारा आयोजित पहला औपचारिक प्रशिक्षण लिया. इसके बाद इन्होंने नॉर्थ-ईस्टर्न और हिमालयी राज्यों आरकेवीवाई असम के लिए बागवानी मिशन के प्रशिक्षण में भाग लिया. इस ट्रेनिंग की मदद से ही नबनीता ने पारंपरिक खेती के अलावा मछली पालन और पशुपालन शुरू किया.
अब तो नबनीता खेती के क्षेत्र में इतनी वृद्धि कर चुकी हैं कि उनका खेत एक छोटा कृषि केंद्र बन चुका है. वह यहां पारंपरिक फसलों के साथ साथ तरह-तरह के फूल भी उगाती हैं. नबनीता अपने खेत में धान के अलावा, फल, सब्जी, दलहन और तिलहन की फसलों की खेती करती हैं. इतना ही नहीं बल्कि नबनीता ने पशुपालन में भी बहुत अच्छा काम किया है. उनके पास अलग-अलग नस्ल की मुर्गियां हैं. इन मुर्गियों में प्रसिद्ध कड़कनाथ भी है. इसके अलावा उन्होंने कबूतर और बत्तख की देसी-विदेसी नस्लों का पालन भी किया है.
नबनीता ने कृषि के क्षेत्र में जो योगदान दिया है उसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्होंने समाज की उस सोच को बदला है जहां खेती के लिए केवल पुरुषों को ही सक्षम माना जाता है. आज वह अपने क्षेत्र के कई किसानों के लिए मिसाल बन चुकी हैं. उन्हें सिर्फ सम्मान ही नहीं मिलता बल्कि वह अपने इस काम से अच्छी खासी रकम भी कमा रही हैं.
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