पारम्परिक खेती छोड़ लगाए थाई अमरूद का बगान, आज सलाना कमा रहे 5 लाख रूपए

अगर आप अपने खेती या बागानी में सफलता हासिल करना चाहते हैं तो आप पौधों के लिए केमिकल युक्त रसायन नहीं बल्कि जैविक उर्वरक का उपयोग करें। अगर आप ऐसा करेंगे तो 100% इस बात की गारंटी है कि आप इसमें सफलता हासिल कर सकते हैं।
आय कम होने के कारण खेती छोड़ शुरू की बागवानी
वह किसान हैं 50 वर्षीय राजेश पाटीदार जो मध्यप्रदेश के इंदौर से नाता रखते हैं। वह भी पहले आलू प्याज एवं लहसुन की खेती किया करते थे परंतु जब उन्हें इस खेती से उनके योग्य लाभ नहीं हुआ तब उन्होंने अमरूद की बागवानी प्रारंभ की। अब वह 3 एकड़ जमीन में 4 वर्षों से अमरूद की खेती कर उसमें सफलता हासिल कर चुके हैं एवं वह अपने बागवानी से हर वर्ष 500000 रुपए कमाते हैं। इसके अतिरिक्त वह अदरक, सफेद मूसली एवं हल्दी की इंटरक्रॉपिंग भी करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले मैं परंपरागत खेती को अपना कर खेती किया करता था परंतु जब इसमें लागत बढ़ने लगी और मुनाफा कम आने लगा तब मैंने इसे वर्ष 2017 में छोड़ दी एवं एक बागवानी की शुरुआत की जिसमें औषधीय पौधों को लगया।
हुआ था 20 टन फल प्राप्त
उन्होंने अपने बागवानी में रायपुर से वीएनआर किस्म के पौधे मंगवाकर लगाएं। उन्होंने 3 एकड़ जमीन में लगभग 1800 पौधे लगाएं। उनकी बगानी में पौधों की बीच की दूरी लगभग 7-10 फीट है। वह पौधों की सिंचाई एवं पोषण का बेहतर ध्यान रखते हैं इसलिए उन्होंने शुरू से ही ड्रिप इरिगेशन पद्धति को अपनाया है। वह बताते हैं कि अगर आप हम अमरूद की खेती करें तो हमे इससे लगभग 18 माह में फल प्रारंभ हो जाएंगे एवं समय के अनुसार इसकी उत्पादकता बढ़ने लगती है। वह बताते हैं कि साल में मुझे 8 लाख तक की राशि प्राप्त होती है जिसमें मुझे 3 लाख रुपए की लागत लगी होती है। अगले वर्ष उन्हें अपनी खेती में 20 टन फल प्राप्त हुए थे और उन्होंने अपने फल को 60 रुपए प्रतिकिलोग्राम बेचा था।
निर्यात के लिए जाता है अन्य शहरों में भी फल
वह बताते हैं अमरूद के बाग में मूसली की खेती से मुझे वार्षिक टर्नओवर के तौर पर 4 लाख की उपज प्राप्त होती है अगर मैं इसमें से खर्च हटा दूं तो मुझे 2 लाख लाभ के तौर पर प्राप्त होते हैं। उनके अनुसार अमरूद जैसे फलों में हार्वेटिंग के समय की बहुत हीं मान्यता होती है। अगर फल ज्यादा बड़े हो गए हैं तो इसे हमें अच्छे मूल्य नहीं मिलेंगे। उनके बागों में अभी 400 ग्राम से लेकर 700 ग्राम के बीच के अमरुद लगे हुए हैं। वह बताते हैं हम शुरुआती दौर में ही और जब फल 500 ग्राम से 700 ग्राम तक होने लगता है तो उसे तोड़ कर निर्यात के लिए भेजना प्रारंभ कर देते हैं। फलों को तोड़ 20 किलो के बक्से में भरकर बाजार भेजा जाता है। उनके फल इंदौर की मंडी के अतिरिक्त मुंबई एवं दिल्ली भी बिकने के लिए जाते हैं।
जॉब छोड़ लौटे गांव शुरू की खेती
वह बताते हैं कि शुरुआती दौर में मैंने एक प्राइवेट कंपनी में जॉब किया है परंतु जब मन ऊब गया तो उसे छोड़ गांव वापस आ गया और फिर यहां 3 एकड़ जमीन में खेती प्रारंभ कर दी। जब मुझे खेती में उतना अधिकतर आय प्राप्त नहीं हुआ था तो मैंने बागानी प्रारंभ की। वह बताते हैं कि वह अपने बागान में अमरुद के पौधे के बीच इंटरक्रॉपिंग फसल के तौर पर औषधीय फसल जैसे अदरक हल्दी मूसली आदि को लगाया हैं। इस वर्ष उन्होंने अपने बगीचे में सफेद मूसली उगाया जिससे उन्हें अधिक लाभ मिला। उनके 3 एकड़ में लगभग 4 क्विंटल मूसली का उत्पादन हुआ। मार्केट में मूसली की कीमत 850 रुपए होती है जिससे उन्हें हर वर्ष इससे 4 लाख की आमदनी होती है।
करते हैं गौ पालन भी
उन्होंने बताया कि जैविक खेती के लिए मैंने गोपालन किया है। उनका मानना है कि अगर हम जैविक खेती कर रहे हैं तो गौ पालन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इसके गोबर से बेहतर उर्वरक का निर्माण होता है। उन्होंने अपने फार्म में गोबर गैस प्लांट रखा है जिसके गैस का उपयोग रसोई में किया जाता है और जो अपशिष्ट बच जाते हैं उसका निर्माण उर्वरक बनाने में होता है। वह गौ मूत्र का उपयोग जैविक सरकार की निर्माण के लिए करते हैं अब यहां के किसानों का रुझान जारी खेती की तरफ अधिक बढ़ रहा है और वह भी राजेश से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। यहां सभी किसान जाविक विधि से खेती करते हैं इसलिए इसे जैविक गांव का नाम मिला है।
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