एक पिता का संघर्ष: घर टूटा, पत्नी चली गई, रिक्शे को घर बना सड़क पर बच्चों को पढ़ा रहा है वो

एक पिता का संघर्ष: घर टूटा, पत्नी चली गई, रिक्शे को घर बना सड़क पर बच्चों को पढ़ा रहा है वो

सरकार विकास के नाम पर ग़रीबों के घर तो तोड़ देती है लेकिन उन्हें दोबारा बसाने के बारे में योजना बनाना भूल जाती है. कुछ लोगों को मुआवज़े की तय रकम का कुछ हिस्सा मिल जाता है लेकिन क्या घर बनाना इतना आसान होता है? देश के हर शहर में बेघर लोग घूमते दिख जाते हैं. कुछ लोगों के पास काम तो है लेकिन घर नहीं तो वो दिनभर कमाने-खाने के बाद ही फुटपाथ को ही अपना घर बना लेते हैं. ये एक तस्वीर ही देशभर के कई लोगों की कहानी बयां कर रही है. दरअसल 38 वर्षीय गणेश साहू एक पिता है, और रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट पालता है

गणेश के दो बच्चे हैं- 9 साल की बेटी गंगा और 7 साल का बेटा अरुण. गंगा और अरुण की मां उन्हें अरुण के पास छोड़ कर चली गई. अतिक्रमण में गणेश की झोपड़ी टूट गई. मजबूरी में उसे रिक्शे को ही अपना घर बनाना पड़ा. बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए गणेश सड़के किनारे चादर बिछाकर ही उन्हें पढ़ाता है.

गणेश अगर रिक्शा न चलाए तो बच्चों को 1 वक़्त का खाना तक न मिले और गणेश उन्हें पढ़ाना भी चाहता है. माता और पिता दोनों की ही ज़िम्मेदारी उठा रहा है गणेश.

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Don`t copy text!