IT कंपनी छोड़ खेती में आजमाई किस्मत, 3 लाख से ज्यादा हुई महीने की कमाई

आर. नंदा किशोर रेड्डी एक आईटी प्रोफेशनल थे और पिछले तीन सालों से एक कंपनी में नौ से पांच की स्थाई नौकरी कर रहे थे। लेकिन कुछ था, जो उन्हें बेचैन कर रहा था। जब मार्च 2020 में कोविड महामारी ने देश में अपने पैर फैलाने शुरू किए, तो बहुत से लोगों की नौकरियां जाने लगीं। कश्मकश के उस दौर में हैदराबाद के रामपुर गांव में रहनेवाले किसान के इस बेटे ने भी एक निर्णय लिया। किशोर ने अपनी 35 हजार रुपये की जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी और घर वापस आकर पालक की खेती करने का फैसला किया। यह एक ऐसा फैसला था, जो जिंदगी को देखने के उनके नजरिए में बदलाव लेकर आया।
पता चली खेती की अहमियत
किशोर कहते हैं, “मैं काफी लंबे समय से अपने पिता को खेती करते देखता आ रहा था। पर मेरे मन में कभी खेतों में काम करने का विचार नहीं आया। खेती में मेरी कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। लेकिन जब देश महामारी से जूझ रहा था, लोगों की नौकरियां जाने लगीं, देश में लॉकडाउन लग गया और हर कोई थोक में खाने का सामान खरीदकर स्टोर करने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि कृषि हमारे अस्तित्व के लिए कितना जरूरी है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर किसान खेती नहीं करेगा तो लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होगा। मैं जानता था कि तकनीकी जानकारी और इसके पीछे काम करने का मेरा जुनून, खेती को एक फायदेमंद सौदे में बदल सकता है। मैंने जैविक खेती और क्षेत्र में नए इनोवेशन के बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली थी। इससे मुझे खेती में पूरा समय काम करने का हौसला मिला।”
आसान नहीं था फैसला लेना
बस इन्हीं इरादों के साथ, किशोर ने नौकरी छोड़ दी और खेत में अपने पिता की मदद के लिए गांव लौट आए। आज एक एकड़ में फैले पॉली हाउस और दो एकड़ की अन्य जमीन पर किशोर और उनके पिता राजा, विदेशी खीरा और पालक उगाते हैं। उनकी वार्षिक उपज 30 टन है। जहां किशोर अपनी नौकरी से महीने में सिर्फ 35 हजार रुपये कमा पाते थे, आज उनकी आमदनी 3.5 लाख रुपये प्रति माह हो गई है।
पालक, विदेशी खीरा और सहायक फसलें उगाने के लिए, तीन महीनों के दौरान कुल लागत 5 लाख रुपये आती है। जिसमें मज़दूरों को दिए जाने वाला पैसा, उर्वरक, कीटनाशक और पॉली हाउस की मरम्मत पर होने वाला खर्च शामिल है। किशोर का दावा है कि कमाई औसतन 10 लाख तक पहुंच जाती है। साल के बाकी महीनों में वह अपने खेतों में शिमला मिर्च, हरी मिर्च और भिंडी की खेती करते हैं।
किशोर बताते हैं, “मैं बचपन से ही खेतों के बीच पला-बढ़ा हूं। खेती के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी थी मुझे। लेकिन आईटी पेशे को छोड़, कृषि की तरफ आना इतना आसान नहीं था। इसमें मेरे पिता और मेरे एक दोस्त ने काफी मदद की। उन दोनों ने मुझे इस क्षेत्र के बारे में काफी कुछ सिखाया। फसल की बुवाई कब करनी है, कब उसे काटना है और कौन सी फसल किस मौसम के लिए उपयुक्त है- ये सारी जानकारी मुझे पिताजी ने दी थी और जो बाकी बच गया था, उसे कृषि विषय में पढ़ाई कर रहे मेरे दोस्त ने समझा दिया था।”
नई तकनीकों से जुड़कर हुआ फायदा
किशोर कहते हैं “मैं पिछले दो सालों से खेती कर रहा हूं। मिट्टी की तरफ लौट कर आना मेरे लिए काफी फायदे का सौदा रहा। क्योंकि मैंने खेती करने के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है, जैसे ड्रिप इरिगेशन, नॉन रेसिड्युएल स्प्रे, रेज्ड बेड सिस्टम और ड्रिप फर्टिगेशन- इन सबने बेहतर पैदावार दिलाने में मदद की। इससे मेरी कमाई भी काफी बढ़ गई।”
उन्होंने कहा, “ड्रिप फर्टिगेशन एक महत्वपूर्ण तकनीक है। इसमें पानी के साथ उर्वरकों को मिलाकर, डिपर के जरिए बूंद-बूंद करके पौधों तक पहुंचाया जाता है। पौधों की जड़ें पानी को धीरे-धीरे सोखती हैं और पानी के साथ उर्वरक भी सीधा जड़ों में समान रूप से पहुंचता रहता है। इससे मिट्टी में उच्च पोषक तत्व बने रहते हैं, यह मिट्टी को लंबे समय तक नम रखती है, पानी की बचत होती है और मिट्टी की उर्वरक क्षमता को भी बढ़ाती है। इस तकनीक से न केवल फसलों की पैदावार बढ़ती है, बल्कि मिट्टी का कटाव भी कम होता है।”
रेज्ड बेड सिस्टम में, खेत में बुवाई के समय क्यारियां बनाई जाती हैं और इन्हीं के जरिए सिंचाई की जाती है। इससे पानी की काफी बचत होती है। FAO (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूनाइटेड नेशन्स) के अनुसार, रेज्ड बेड सिस्टम एक बेहतर सिंचाई प्रणाली है, जो जल उपयोग दक्षता को बढ़ाती है।
और भी हैं तरीके फायदे कमाने के
किशोर कहते हैं, “रेज्ड बेड सिस्टम से बेहतर उपज मिलती है, जिससे नालियों या क्यारियों को बनाने के लिए छोड़ी गई जगह की भरपाई हो जाती है। इसके अलावा, कई अन्य पारंपरिक तरीके हैं जिनसे फसलों की अच्छी पैदावार होती है, जैसे- फसल चक्र, खाद, फेरोमोन ट्रैप, रोग और कीट प्रतिरोध बीज, बीज उपचार और फसल अवलोकन आदि।”
बीज उपचार का मतलब समझाते हुए उन्होंने बताया, “फसलों को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज बोने से पहले कुछ फंगशनासी या कीटनाशकों से उपचारित किया जाता है। उदाहरण के लिए पालक (Spinach Farming) को थीरम फंगीसाइड से ट्रीट किया जाता है, ताकि उसे गलने से रोका जा सके। कीट और प्रतिरोधक बीजों का चयन भी उच्च गुणवत्ता वाली उपज सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
दोस्तों ने भी की मदद
खेती को और लाभदायक बनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किशोर और उनके पिता ने Deep Rooted.Co के साथ मिलकर काम किया। यह एक एग्रीटेक फॉर्म-टू-होम स्टार्टअप है, जो पैकेज्ड और क्यूरेटेड फल और सब्जियां बेचता है। साथ ही किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है, ताकि वे खेती से होने वाले लाभ को बढ़ा सकें।
Deep Rooted.Co ने जब साल 2018 में किशोर के पिता राजा से संपर्क किया, तो उनका मकसद खेती से होने वाली उपज को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना था। इसके लिए उन्होंने खेती से जुड़े कुछ पहलुओं को समझने में मदद करने के लिए राजा को एक कृषि वैज्ञानिक महेश्वर रेड्डी से मिलवाया। जिसकी वजह से आज किशोर और उनके पिता राजा इनपुट लागत को कम करने और ज्यादा मुनाफा कमा पाने में कामयाब रहे हैं।
आमदनी हुई दोगुनी
किशोर बताते हैं, “उदाहरण के लिए, अगर खेत के एक विशेष हिस्से पर 10 बोरी उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है, तो आप अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उसपर खर्च कर देते हैं। लेकिन महेश्वर ने हमें बताया कि कैसे इतने हिस्से पर सिर्फ दो बोरी उर्वरक से फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने हमें कम समय में, ज्यादा लाभ दिलाने वाली विशेष फसलों को उगाने की सलाह दी।”
उन्होंने कहा, “हमने उनसे ड्रिप फर्टिगेशन, बुवाई के तरीके, बैच-वाइज फसल उगाना, गुणवत्ता की आपूर्ति कैसे बढ़ाई जाए और अन्य चीजों के साथ सब्जी की हैंडलिंग के बारे में भी सीखा। जब से हमने Deep Rooted के साथ काम करना शुरू किया है, तब से हमारी आमदनी दोगुनी हो गई है। औसतन हम कंपनी से 45 दिनों में लगभग 4 लाख रुपये कमा लेते हैं।”
‘खर्चे को कम करके, पैदावार बढ़ाने का लक्ष्य’
डीप रूटेड के सह-संस्थापक, अविनाश बीआर कहते हैं, “हमारा लक्ष्य मांग-संचालित आपूर्ति श्रृंखला के जरिए छोटे किसानों के होने वाले खर्च को कम करके, पैदावार और मुनाफ़े को बढ़ाना है। परिशुद्ध खेती हमारी इन-हाउस एग्रोनॉमी टीम की विशेषता है। खेती के लिए जमीन को तैयार करना, बुवाई और फसल के समय के साथ-साथ हम फसल चक्र के लिए योजना संसाधनों पर लगातार जानकारी साझा करते रहते हैं।”
उन्होंने कहा, “हमने नन्द किशोर जैसे किसानों के कृषि नुकसान को कम करके, पैदावार बढ़ाने में काफी मदद की है और फसल के बाद होने वाले नुकसान को भी 30 से 6 प्रतिशत तक कम कर दिया है। फिलहाल हमारे साथ बैंगलोर और हैदराबाद के 90 से अधिक किसान जुड़े हैं, जो विशेषज्ञों और कृषिविदों के मार्गदर्शन में फसल उगा रहे हैं।”
अविनाश का मानना है कि तकनीकी की अच्छी समझ रखने वाले किशोर जैसे युवा किसानों में आगे बढ़ने की काफी सम्भावनाएं हैं। उनके अनुसार, “जैविक खेती में उनकी दिलचस्पी और नई तकनीकों को सीखने का उत्साह उन्हें ज्यादा से ज्यादा उपलब्धियां हासिल करा पाने में सक्षम है। वह अपनी निरंतर कड़ी मेहनत और हमारे कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से काफी आगे तक जा सकते हैं।”
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]