खुद्दार शिक्षक की कहानी जिसने छात्राओं के लिए अपने ट्रेक्टर को ही बना दिया स्कूल वाहन

खुद्दार शिक्षक की कहानी जिसने छात्राओं के लिए अपने ट्रेक्टर को ही बना दिया स्कूल वाहन

हमारे देश में कईं ऐसे इलाके हैं जहां ब्च्चों को शिक्षा जैसा बुनियादी अधिकार पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. कोई छात्र मुश्किलों से नदी पार कर स्कूल पहुंचता है तो कोई छात्र कईं किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचता हैं. कईं छात्राओं को तो अपनी पढ़ाई केवल इसीलिए छोड़नी पड़ती है क्यों कि उनके मां बाप उन्हें अकेले गांव से दूर स्कूल नहीं भेजना चाहते। ऐसे में एक शिक्षक हम सभी के लिए मिसाल बनकर सामने आए हैं जिन्होने अपने स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए खुद के खर्चे पर एक ट्रेक्टर खरीदा और स्वयं ही उसे चलाकर दूसरे गांव से इन छात्राओं को स्कूल तक लेकर आते हैं.

सभी के लिए मिसाल बने शंकर काग

शंकर काग मध्यप्रदेश के मनावर के पास गुलाटी के शासकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय में प्रधानअध्यापक हैं लेकिन वो इसे केवल एक नौकरी नहीं मानते. उन्होने अपनी मेहनत और लगन से पूरे स्कूल का कायाकल्प कर दिया है. शंकर ने देखा कि उनके स्कूल में तीन किलोमीटर दूर से छात्राएं पैदल पढ़ने आती हैं लेकिन अगर स्कूल में सुविधाएं बढ़ा दी जाएं तो छात्राओं की संख्या बढ़ी सकती है। इसलिए उन्होने सबसे पहले स्कूल को चमकाया और उसमें सुविधाएं बढ़ाई।

जुगाड़ से बैठने लायक बनाया ट्रेक्टर

शंकर ने पहले 1 लाख 75 हजार रुपए में ट्रेक्टर खरीदा लेकिन ट्रेक्टर पर चार छात्राओं से ज्यादा के बैठने की जगर नहीं थी। इसलिए उन्होने जुगाड़ लगाकर सीट की लंबाई बढ़ाई और ट्रेक्टर को बैठने लायक बनाया। अब रोज वो सुबह-सुबह आसपास के गांवों में ट्रेक्टर लेकर जाने लगे. इससे कईं छात्राएं जो पहले स्कूल नहीं जा पाती थी वो खुशी-खुशी स्कूल आने लगी और उनके मां-बांप भी प्रधानअध्यापक के साथ अपनी बेटियों को स्कूल भेजने में सुरक्षित महसूस करते हैं।

2 माह का वेतन इसी पर खर्च करते हैं

किसी के लिए भी सबसे मुश्किल होता है अपनी जेब से पैसे खर्च करना. लेकिन अगर दिल में जूनून और कुछ बदलने की ठानी हो तो फिर पैसा कठिनाई नहीं बनता. शंकर पिछले 7 सालों से अपना 2 महीने का वेतन स्कूल के विकास कार्यों के लिए ही खर्च करते आ रहे हैं.

उनका कहना है कि अगर मेरे गांव के स्कूल की छात्राएं तरक्की करती है तो इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या होगी। मैं एक किसान हूं और जानता हूं कि खेत में जितना खर्च करूंगा उतनी अच्छी फसल होगी. इसी तरह अगर स्कूल का प्रधानअध्यापक होने के नाते अगर में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दूंगा तो वो भी अपने क्षेत्र का नाम रोशन करेंगे.

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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