कभी 4 भाइयों ने शुरू की थी पान की एक छोटी सी दुकान, बना 300 करोड़ का डेयरी साम्राज्य

साल 1989 में गुजरात के अमरेली शहर में सौंदर्यीकरण की कवायद शुरू हुई। नगर निगम ने सड़क किनारे की कई छोटी-छोटी दुकानें और स्टॉल्स तोड़ दिए और इसके साथ ही तोड़ दिए कई परिवारों के सपने, उनकी पूंजी और पेट पालने का ज़रिया। सब-कुछ तो छिन गया था, लेकिन फिर भी एक आस बाकी थी, थोड़ी हिम्मत और कुछ बड़ा करने की प्यास बाकी थी।
अब नुकसान तो हो चुका था, उसपर अफसोस करने का कोई फायदा नहीं था। जो दुकाने तोड़ी गईं उनमें से एक दुकान, गुजरात के चावंड़ गांव के रहनेवाला सीधे-सादे भुवा परिवार की भी थी। यह परिवार गांव में खेती करके अपना गुज़ारा करता था, लेकिन गांव में पढ़ाई की अच्छी सुविधा ना होने के कारण घर के बड़े, डाकू भाई न पड़ोसी शहर अमरेली जाने का फैसला किया। ताकि उनके चारों बेटे दिनेश, जगदीश, भूपत और संजीव अच्छी पढ़ाई करके कोई नौकरी कर लें और परिवार एक अच्छा जीवन जी सके।
तो बस बेहतर जिंदगी की तलाश में साल 1987 में भुवा परिवार अमरेली आ गया था। यहां आने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी काम। ऐसे में बड़े भाई दिनेश ने सिटी बस स्टैंड के पास, पान की दुकान खोलने का सुझाव दिया। यह ऐसी जगह थी, जहां सामान खरीदने वालों की कमी नहीं थी, इसलिए अच्छी कमाई होने की पूरी संभावना थी। बस फिर सबकी सलाह से उन्होंने एक छोटी सी पान और कोल्ड ड्रिंक की दुकान खोली। आधे दिन दिनेश दुकान संभालते थे और बाकी के आधे दिन दूसरे भाई।
धीरे-धीरे दुकान से अच्छी-खासी आमदनी होने लगी और सभी भाइयों की पढ़ाई भी सही ढंग से चलने लगी। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन तभी नगर निगम ने उनकी दुकान तोड़ दी।
जन्माष्टमी के मेले ने बदल दी किस्मत
चारों भाइयों ने हिम्मत न हारते हुए नई तरह से शुरुआत करने का फैसला लिया। उन्होंने बस स्टैंड के पास ही 5X5 फिट की एक छोटी सी दुकान खरीद ली। सामान वही था, बस दुकान नई थी।
कुछ सालों बाद 1993 में, जन्माष्टमी उत्सव के दौरान, भाईयों के मन में दुकान पर आइसक्रीम बेचने का विचार आया। बस यही वह कदम था, जिसने उनके आइसक्रीम के बिज़नेस (Sheetal ice cream) की नींव रखी थी। भूपत ने बताया, “इस उत्सव में मेले जैसा माहौल रहता था। तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों की बड़ी संख्या में आने से बिज़नेस भी तेजी से बढ़ने लगा। इसे और विस्तार देने के लिए हमने अपनी दुकान पर आइसक्रीम बेचने का फैसला किया।”
शुरु में वे एक स्थानीय कंपनी से आइसक्रीम खरीदकर, कमीशन पर उन्हें बेचा करते थे। उनकी योजना सफल रही, इससे उनका मुनाफा काफी बढ़ गया। लोगों को आइसक्रीम पसंद आ रही थीं। इसी दौरान उन्होंने आइसक्रीम बनाना सीख लिया था और फिर इस क्षेत्र में एक कदम और आगे की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने अपनी खुद की आइसक्रीम यूनिट लगाने का फैसला किया। साल 1996 के बाद से वे अपनी बनाई हुई आइसक्रीम बेचने लगे।
चुनौतियां भी कम नहीं थीं
उनके उत्पाद मशहूर हो गए थे और ग्राहक बढ़ते जा रहे थे। साल 1998 में उन्होंने ‘श्री शीतल इंडस्ट्रीज’ के साथ पार्टनरशिप में काम करना शुरू किया। भूपत ने बताया, “बढ़ते बिज़नेस (Sheetal ice cream) को देखते हुए कंपनी बनाने की जरूरत महसूस हो रही थी और फिर हमने ‘गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (GIDC)’ में एक यूनिट की स्थापना की। हमने यहां 150 लीटर दूध के प्रॉसेसिंग की क्षमता वाला प्लांट लगाया गया था।”
धीरे-धीरे कंपनी ने बाजार में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी। शहर, जिले और राज्य के कई हिस्सों में दुकानों पर अब उनके ब्रांड की आइसक्रीम बेची जा रही थी। हालांकि उनके बढ़ते कदमों को विकासशील देश भारत में मौजूद कुछ चुनौतियां रोक रही थीं। उनमें अमरेली में बार-बार गुल होने वाली बिजली की समस्या सबसे बड़ी थी। इससे बिक्री बहुत प्रभावित हो रही थी।
वह बताते हैं, “यहां कभी-कभी तो 24 घंटे बिजली नहीं रहती थी। सभी गांवों का यही हाल था। बिजली का आना-जाना एक बड़ी चुनौती और चिंता थी। हालांकि स्थिति में सुधार होना तब शुरू हुआ, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2003 में पूरे गुजरात में बिजली पहुंचाने के लिए ग्राम ज्योति योजना लॉन्च की। हमने सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए उन ग्रामीण और शहरी इलाकों में अपनी आइसक्रीम पहुंचानी शुरू की, जहां पहले से 100 प्रतिशत बिजली की पहुंच थी।”
Sheetal ice cream बिजनेस बना सबसे बड़ी रोजगार कंपनी
कंपनी ने नए डेयरी प्रोडक्ट्स लॉन्च किए और साल 2012 में कंपनी का नाम बदलकर, ‘शीतल कूल प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड’ रख दिया गया। भूपत ने बताया है कि तब तक उनकी यह कंपनी दूध और दूध से बने अन्य उत्पाद, जैसे- दही, छाछ, लस्सी भी बेचना शुरू कर चुकी थी। उन्होंने साल 2015 में फ्रोजन फूड, पिज़्ज़ा ,परांठा, स्नेक्स आदि में भी हाथ आजमाया।
साल 2016 तक कंपनी नमकीन (स्वादिष्ट स्नेक्स) की नई वैराइटी लेकर बाजार में उतरी और अगले साल 2017 में, पब्लिक लिमिटेड कंपनी, शीतल कूल प्रोडक्ट्स लिमिटेड में लिस्टेड हो गई।
आज कंपनी रोजाना 2 लाख लीटर दूध की प्रॉसेसिंग करती है। यहां 1500 कर्मचारी काम करते हैं, जिनमें से 800 महिलाएं हैं। आज कंपनी 500 से ज्यादा उत्पाद बेच रही है। भूपत का दावा है कि शीतल कूल प्रोडेक्ट क्षेत्र में सबसे बड़ी रोजगारदाता कंपनी है।
Sheetal ice cream बिजनेस ने अपनाई मार्केटिंग की अलग रणनीति
अपनी सफलता के बारे में बात करते हुए भूपत ने बताया, “हमारे उत्पाद खासकर आइसक्रीम और लस्सी, शुद्ध दूध और क्रीम से बनाए जाते हैं। हमने अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग नहीं की है, हमने उन्हें फ्रोजन डेजर्ट के रूप में ब्राण्ड किया है। हमने गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया। फ्रोजन लस्सी हमारा सबसे ज्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट था।”
दरअसल, वे गुजरात के दूर-दराज के इलाकों में अपने ब्रांड को ले जाने में कामयाब रहे, जो अन्य प्रतियोगी नहीं कर पाए। वह बताते हैं, “कई गांवों और सेमी अर्बन इलाकों में तो लोगों ने आजादी के बाद, पहली बार आइसक्रीम का स्वाद चखा था। मार्केटिंग के कुछ इस तरह के कदमों ने हमें बाजार पर अपनी पकड़ बनाने में मदद की।”
“पहले हमें नहीं पता था कि यह बिज़नेस कहां तक जाएगा, लेकिन कुछ सालों बाद हमें इसकी क्षमता का एहसास हो गया।”
यश मकरानी एक उद्यमी हैं। वह शीतल आइसक्रीम के सालों से ग्राहक रहे हैं। उन्होंने कहा, “पारंपरिक कुल्फी मेरी सबसे पसंदीदा डेज़र्ट है, जबकि ट्रिपल संडे हमेशा मेरे परिवार के लिए रात का खाना खत्म करने का एक शानदार तरीका। इसके अलावा, ड्राइफ्रूट बासुंदी और उनके दूसरे डैयरी प्रोडक्ट्स को हम सालों से खरीदते आ रहे हैं।”
भूपत का कहना है कि ब्राण्ड और गुणवत्ता वाले उत्पादों से बनी साख, आज उनकी कंपनी को इस मुकाम पर लेकर आई है।
भाईयों ने किया मुश्किलों का मिलकर सामना
इस मुकाम तक पहुंचने के लिए इन भाइयों ने कड़ी मेहनत की और काफी मुश्किलों का सामना किया है। भूपत बताते हैं, “शुरुआत में हमारे पास कोई टीम नहीं थी। अकेले ही सब कुछ संभाल रहे थे। सारे भाई बारी-बारी से खुद से रिटेल शॉप जाते थे और उत्पादों को बेहतर बनाने और ग्राहकों से जुड़ने का काम करते। दुकानों पर जाने का एक मकसद यह भी था कि वे हमारे प्रोडेक्ट लोगों के सामने रखें। ऐसे कदम उठाने जरूरी थे, क्योंकि हम नेशनल ब्रांड्स के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। हम दिन के 15-18 घंटे काम किया करते थे।”
उनके पास खुद का कोई वाहन नहीं था। आना-जाना मुश्किल हो रहा था और कच्चे माल की खरीद व बिजली भी एक चुनौती थी। उनका ज्यादातर कच्चा माल पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र से आता था, जिसका मतलब था 200 किलोमीटर की यात्रा का अतिरिक्त परिवहन लागत खर्च।
इन भाइयों ने बिज़नेस की तमाम जिम्मेदारियों को आपस में बांट लिया। भूपत को खुशी है कि इस बिज़नेस से परिवार को बेहतर जीवन जीने और बाकी के कई लोगों को रोजगार देने में मदद मिली है। उन्होंने कहा, “पहले हमें नहीं पता था कि यह बिज़नेस कहां तक जाएगा, लेकिन कुछ सालों बाद हमें इसकी क्षमता का एहसास हो गया। सच तो यह है कि अगर आप पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करते हैं, तो आपको नई ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता है।”
नई पीढ़ी बिज़नेस से जुड़ी
परिवार में अगली पीढ़ी भी अब बिज़नेस से जुड़ गई है। भूपत के बेटे यश भुवा ने कंपनी के कार्यकारी प्रमुख के रूप कंपनी की बागडोर संभाली है। यश कहते हैं, “हमारे पास पूरे भारत में 30,000 आउटलेट्स हैं और 50 बिज़नेस पार्टनर्स। हम कंपनी को और आगे बढ़ाना चाहते हैं। मैंने अपनी विरासत को बनाए रखने और विदेशों में इसका विस्तार करने की जिम्मेदारी ली है।”
21 साल के यश का कहना है, “मैंने बदलते समय के साथ, कंपनी में कई उतार-चढ़ावों को देखा और सीखा कि कंपनी चलाना किसी एक व्यक्ति का खेल नहीं है। कंपनी को इस मुकाम तक लाने में चारों भाइयों ने समान रूप से कड़ी मेहनत की है। भाईचारे, एक समान नजरिए और मिशन को साझा करने से परिवार को सफल होने में मदद मिली है। बिज़नेस को बनाए रखने और इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाने के अपने इरादे पर मुझे पूरा भरोसा है।”
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]