सड़कों पर मरते हुए छोड़ देते हैं जिन्हें लोग, उन्हें इलाज और छत देता है यह शख़्स!

आप और हम सड़क किनारे चलते किसी गरीब, बुजुर्ग और मानसिक रोगी को देखते हैं। उन्हें देख मन में अफसोस करते हैं और सोचते हैं सरकार को इनके लिए कुछ करना चाहिए। तेलंगाना राज्य के सिकंदराबाद में एक एनजीओ है, ‘गुड समैरिटन इंडिया’, जो इस मुद्दे पर जी जान लगा कर काम कर रही है। इस पहल के कर्ता-धर्ता हैं जॉर्ज राकेश बाबू। जिन्होंने अपना जीवन इन्हीं भटके हुए लोगों की सेवा में निछावर कर दिया है। जॉर्ज की दिनचर्या में उनका इलाज करवाना, देखभाल करना और मुत्यु हो जाने पर पूरे सम्मान से अंतिम संस्कार करना भी शामिल है।
11 साल पहले हुई थी शुरुआत
द बेटर इंडिया से बातचीत में जॉर्ज बताते हैं कि उनके इस जूनून की शुरुआत 2008 में एक क्लीनिक से हुई थी, जो बुजर्गो के लिए फ्री क्लीनिक था। उन्होंने अक्सर महसूस किया कि बुजुर्ग लोग वहां दवाईंया लेने कम और उनसे बात करने ज्यादा आते हैं। वे इतने तन्हा हैं कि वे बस बात करना चाहते हैं। घरवालों से हताश और परेशान, इन बुज़ुर्गों की बातें सुनने वाला कोई नहीं है। धीरे-धीरे वह क्लीनिक वेलफेयर सेंटर में तबदील हो गया। जहां अब घर से बेघर हुए लोगों को लाया जाता है, उनका इलाज किया जाता है, उनकी काउंसलिंग की जाती है और ठीक होने पर उनकी घर-वापसी की कोशिश की जाती है। अगर घरवाले इन बुज़ुर्गों को अपनाने से इनकार कर दें, तो उनकी मुत्यु होने तक उनका ख्याल रखा जाता है।
2011 में ‘गुड समैरिटन इंड़िया’ को चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर किया गया। यहां अब तक 300 से ज्यादा बेसहारा लोग अपना आश्रय, अपना आशियाना पा चुके हैं। दस सालों में गुड समैरिटियन इंडिया के तीन ब्रांच बन गए हैं, जिसमें से एक में इलाज होता है और दूसरी में इन बुज़ुर्गों को छोटे-मोटे स्किल्स सिखाए जाते हैं।
राह में आईं कई बाधाएं, फिर भी रुके नहीं जॉर्ज
ऐसा नहीं है कि सुनने में ही इतने मुश्किल लगने वाले कार्य में रुकावटें नहीं आईं। जॉर्ज बताते हैं कि शुरुआती दौर में बहुत सी कठिनाईयों का उन्हें सामना करना पड़ा। समाज के लोग उन पर विश्वास नहीं करते थे। पुलिस और अस्पताल के लोगों को समझाना कठिन हो गया था। पैसों का अभाव भी था। लेकिन जॉर्ज का दृढ़ निश्चय और समर्पण भाव ही था, जिसने इस असंभव लगने वाले काम को संभव कर दिखाया।
वो कहते हैं न कि ‘किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने की कोशिश करती है’, ऐसा ही कुछ जॉर्ज के साथ भी हुआ। धीरे-धीरे लोगों का उन पर विश्वास बढ़ने लगा और अब लोग खुद उन्हें सूचित करने लगे। जहां शुरुआत में 10-15 बेघर लोगों को एक महीने में बचाया जाता था, आज उसकी संख्या 30-35 तक पहुंच चुकी है। हाल ही में जॉर्ज ने ‘एलडर्ली स्प्रिंग’ नामक एक संस्था के साथ टाइअप किया है, जो टाटा ट्रस्ट के अधीन है। साथ ही एक हेल्पलाइन नंबर भी चलाया है, जिससे लोगों की पहुंच बढ़ सके। नए शेल्टर होम (जिसे ‘जॉर्ज डेस्टीट्यूट होम’ कहते हैं) का भी निर्माण भी शुरु हो गया है। जॉर्ज अब केवल बेघर लोगों की सेवा ही नहीं, बल्कि पलायन कर काम करने आए मजदूरों की भी सहायता करते हैं, जो कोई चोट लगने के कारण अपने घर नहीं जा पाए। उन्हें ठीक कर घर भेजने का पूरा बंदोबस्त किया जाता है।
अपने काम के प्रति निष्ठा को देखते हुए गैप (Global Action on Poverty) ने गुड समैरिटन को बेस्ट ह्युमेरिटेरियन का आवॉर्ड भी दिया है। जॉर्ज वर्ल्ड कम्पैशन अवॉर्ड से भी नवाज़े गए हैं। अब लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर जॉर्ज का सहयोग देना शुरू कर दिया है।
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]