2500 रुपये से 25 लाख का सफर, हौसले की कहानी है इनकी किसानी!

मध्य प्रदेश के एक गाँव बीजकवाडा में पैदा हुए किसान के इस बेटे को कहाँ पता था कि वह 4 एकड़ की ज़मीन को 40 एकड़ में बदल देगा। ये कहानी है गुरु प्रसाद पवार की जिनके पिता एक किसान थे। पिता के पास खेती की ज़मीन तो थी लेकिन सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं थे। जिला छिंदवाड़ा के इस गाँव में पानी की समस्या के कारण किसानी मुश्किल थी। बेटे को जब 10वीं की परीक्षा में फर्स्ट आने पर प्रिंसिपल ने सम्मानित किया तो किसान पिता के मन में आस जगी कि बेटे को टीचर बनाएंगे।
गुरु प्रसाद पवार
पिता के सपने को पूरा करने के लिए गुरु प्रसाद ने एमए और डी एड में डिप्लोमा किया। इसके बाद 2004 में वह सरकारी शिक्षक वर्ग-2 में चयनित होकर सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगे, जिसके लिए उन्हें ₹2500 प्रति माह की सैलरी मिलती थी। परिवार में चार सदस्य थे और इतनी कम आमदनी में उनके लिए परिवार को चलाना मुश्किल हो रहा था।गुरु प्रसाद कहते हैं, “एक अध्यापक की आमदनी में इतना बड़ा कुनबा नहीं चल पा रहा था। रात दिन मुझे यही चिंता सताती रहती कि घर कैसे चलेगा।”
“मेरे घर में पैतृक संपत्ति के तौर पर चार एकड़ भूमि थी, लेकिन मुझे खेती का कोई अनुभव नहीं था। मैंने तो हमेशा किताबों में ही जीवन गुज़ारा था, पर ज़रूरतें सब करवा लेती हैं। मैंने शिक्षण कार्य के साथ-साथ खेती का काम भी करना शुरू किया।” उन्होंने आगे बताया।
साल 2005 में उन्हें शिक्षण से ज्यादा खेती के ज़रिए आय प्राप्त हुई। उन्होंने सोचा, जब थोड़ा समय देने पर खेती से इतनी आय हुई, तो पूरी लगन और निष्ठा के साथ खेती करने पर बहुत फायदा होगा। उन्होंने जब ये बात परिवार के साथ साझा की तो सबने उनका साथ दिया और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ने जैसा एक बड़ा फैसला ले लिया। उन्होंने पूरा ध्यान कृषि पर केन्द्रित किया और लहसुन की खेती की। इससे उनको ₹10 लाख की आय हुई।
गाँव में पानी की समस्या थी इसलिए उन्होंने इसका तोड़ निकालने के लिए शोध करना शुरू किया। उन्होंने कृषि केंद्र में जाकर वैज्ञानिकों से सलाह ली और खेती के लिए ऐसा फसल चक्र तैयार किया जिस से एक साल में रबी और खरीफ, दोनों फसलों की अधिकतम पैदावार मिल सके। उन्होंने रबी और खरीफ फसलों के बीच कुछ ऐसी फसलें भी उगाने की सोची जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम न हो और फसल अच्छी हो।
“मुझे ड्रिप इरीगेशन सिंचाई तकनीक के बारे में पता चला। इस तकनीक से कम पानी में खेत की सिंचाई की जा सकती है। इसके बाद मैंने कृषि विभाग के सहयोग व अपनी जमा पूंजी से 15 एकड़ खेत में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई हेतु ये नई तकनीक अपनाई, जिससे मुझे बहुत फायदा हुआ। खेतों में लेबर चार्ज की कमी आई एवं मेरी बचत में इज़ाफ़ा हुआ।” – गुरु प्रसाद पवार
साल 2015 में उन्हें स्वीट कॉर्न के बारे में पता चला जो खरीफ एवं रवि दोनों सीज़न में लगता है। इसके बाद उन्होंने 2 एकड़ में स्वीट कॉर्न मक्का लगाया। मार्केट में नया होने के कारण उन्हें बेचने में कुछ परेशानी हुई लेकिन अगले साल उन्होंने फिर15 एकड़ खेत में स्वीट कॉर्न लगाया। मार्केट में अच्छी मांग होने के कारण अच्छे भाव मिले और उन्हें ₹12 लाख की आय प्राप्त हुई। साल 2016 तक वह 40 एकड़ खेत के मालिक बन गए थे। वह समय का उपयोग करना जानते थे इसलिए सब्जी लगाने के सीज़न में वह अपने पूरे खेत में सब्जी लगाते और गर्मी के समय में स्वीट कॉर्न लगाते थे। यही नहीं, ठंड के समय में अपने खेत में आलू की खेती भी करते थे। इस प्रकार वह काफी मुनाफा कमाने लगे।
“साल 2018 में मैंने अपने पूरे 40 एकड़ खेत में स्वीट कॉर्न की फसल लगाई। मेरा फैसला जोखिम भरा था लेकिन मुझे आशा थी कि स्वीट कॉर्न मुझे अच्छा लाभ देकर जाएगा।” उन्होंने आगे बताया।किस्मत से उस साल स्वीट कॉर्न की बंपर फसल हुई। स्वीट कॉर्न से हुए लाभ में उन्हें ₹25 लाख की आमदनी हुई जिसके लिए उन्हें जिला अध्यक्ष महोदय एवं प्रभारीमंत्री महोदय द्वारा सम्मानित किया गया और राज्य स्तरीय प्रगतिशील किसान हेतु उन्हें चयनित भी किया गया।आज जब कई किसानों को लगता है कि खेती फायदे का सौदा नहीं हैं, ऐसे में गुरु प्रसाद जैसे किसान उम्मीद की उस किरण की तरह हैं, जो बदलाव की नींव रख सकते हैं।
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