गुजरात के कर्मवीर ने 2 बीघे जमीन पर हल्दी की खेती शुरू की, 8 महीने में 3 लाख रुपए का मुनाफा

गुजरात के कर्मवीर ने 2 बीघे जमीन पर हल्दी की खेती शुरू की, 8 महीने में 3 लाख रुपए का मुनाफा

अगर ट्रेडिशनल फार्मिंग से आपका मन ऊब गया है या अच्छी कमाई नहीं हो रही है तो हल्दी की खेती में हाथ आजमा सकते हैं। पिछले कुछ साल से इसकी खेती को लेकर क्रेज बढ़ा है और उन इलाकों में भी किसान हल्दी उगा रहे हैं, जहां पहले लोग सोच भी नहीं सकते थे।

गुजरात के सूरत के रहने वाले कर्मवीर सिंह भी उनमें से एक हैं। पहले वे ट्रेडिशनल फार्मिंग करते थे। गन्ना और धान जैसीं फसले उगाते थे, लेकिन मनमुताबिक आमदनी नहीं होती थी। इसके बाद उन्होंने हल्दी की खेती शुरू की। दो बीघे जमीन पर उन्होंने 32 टन हल्दी का प्रोडक्शन किया है। पहले ही साल उन्हें तीन लाख रुपए का मुनाफा हासिल हुआ है।

कर्नाटक के व्यापारियों ने दिया हल्दी उगाने का सुझाव

कर्मवीर कहते हैं कि पहले मैं धान और गन्ने की खेती करता था। बाद में कर्नाटक और अंडमान-निकोबार के व्यापारियों ने सुझाव दिया कि हल्दी की खेती करो। इसमें मुनाफा ज्यादा होगा। सवाल ये था कि हमारी जमीन हल्दी की खेती के हिसाब से सही नहीं थी। मौसम भी अनुकूल नहीं था। फिर मैंने इसके बारे में जानकारी जुटाई और उसके हिसाब से जमीन की तैयारी की। ऑर्गेनिक खाद और गोबर डालकर दो बीघे जमीन को हल्दी की खेती के लिए तैयार किया।

इसके बाद कर्मवीर ने वसंदा के एक किसान से हल्दी के बीज लिए और खेती शुरू कर दी। उन्हें पुरजोर मेहनत का फल भी मिला। सिर्फ 7 महीने में ही उन्होंने 32 टन हल्दी का प्रोडक्शन किया है। कर्मवीर के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। उनके गांव के बाकी किसान भी अब हल्दी की खेती को लेकर प्लान कर रहे हैं।

डिमांड ज्यादा, इसलिए खेत से ही बिक रही फसल

कर्मवीर कहते हैं कि हमने पिछले साल मई-जून में हल्दी की खेती शुरू की थी। 7-8 महीने बाद हल्दी की फसल तैयार हो गई। इसके बाद हमने हल्दी निकालना शुरू कर दिया। कोरोना के कारण डॉक्टर हल्दी खाने की सलाह दे रहे हैं। इसलिए प्योर और ऑर्गेनिक हल्दी की डिमांड ज्यादा है। बड़े व्यापारी भी खेत पर आकर ही हल्दी खरीद रहे हैं। इसलिए हमें मार्केटिंग को लेकर बहुत मेहनत नहीं करना पड़ा और कम समय में अच्छा मुनाफा मिला है।

वे कहते हैं कि अभी भी हमारे खेत से हल्दी निकल रही है और हम लगातार उसकी सप्लाई भी कर रहे हैं। यानी रेगुलर इनकम हो रही है। अभी इस फील्ड में हम नए हैं, इसलिए हल्दी की खेती करने वाले कर्नाटक और दूसरे राज्यों के किसानों जितनी कमाई नहीं कर पा रहा हूं।

पाउडर बनाकर मार्केटिंग करेंगे

कर्मवीर कहते हैं कि कच्ची हल्दी की कीमत कम मिलती है। इसके पाउडर की कीमत ज्यादा है। कई किसान तो विदेशों में भी हल्दी पाउडर भेजते हैं। इसलिए अब हम भी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में हल्दी पाउडर बनाकर बेचने की योजना बना रहे हैं। हमने इस पर काम शुरू कर दिया है। स्थानीय व्यापारी भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मैं खुद ही पाउडर बनाऊं, ताकि वे इससे मसाले तैयार कर सकें।

कब और कैसे करनी चाहिए हल्दी की खेती

हल्दी की खेती के लिए आम तौर पर जून-जुलाई का महीना सही होता है। अगर सिंचाई की व्यवस्था है तो अप्रैल से भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं। इसके लिए किसी खास मिट्टी की जरूरत नहीं होती।मुलायम और भुरभुरी मिट्टी में इसकी खेती बेहतर तरीके से होती है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि खेत में बहुत ज्यादा पानी या जलजमाव की स्थिति न हो।

सबसे पहले खेती की तीन से चार बार अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। फिर उसमें गोबर और ऑर्गेनिक खाद मिलाना चाहिए। इसके बाद एक फीट की दूरी पर मेढ़ तैयार करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल बीज की जरूरत होती है। अलग-अलग वैराइटी के हिसाब से ये कम ज्यादा हो सकता है।

बीज की बुआई समय ध्यान रखना चाहिए कि बीज अच्छी वैराइटी का हो और कम से कम 7 सेमी लंबा हो। हर 20-25 दिन की अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। मौसम ठंडा है या नमी वाली जगह पर आपने खेती की है तो फिर सिंचाई की जरूरत कम होगी।

हल्दी की कौन-कौन सी वैराइटी होती है

हल्दी की कई वैराइटी होती है। किसी का कलर अलग होता है तो किसी का साइज कम-ज्यादा होता है। वैराइटी के आधार पर प्रोडक्शन और क्वालिटी में भी फर्क पड़ता है। आइए कुछ प्रमुख वैराइटी को जानते हैं…

  • सुगंधम: हल्दी की ये किस्म 200 से 210 दिनों में तैयार हो जाती है। इसका आकार थोड़ा लंबा होता है और रंग हल्का पीला होता है। प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल का प्रोडक्शन होता है।
  • पीतांबर: हल्दी की इस वैराइटी को Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants (CIMAP) ने डेवलप किया है। यह बाकी हल्दी की तुलना में पहले तैयार हो जाती है। यानी 5-6 महीने का वक्त लगता है। एक एकड़ में 270 क्विंटल तक उपज होती है।
  • सुदर्शन: हल्दी की ये वैराइटी आकार में छोटी होती है, लेकिन दिखने में खूबसूरत होती है। 230 दिनों में फसल पककर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल की पैदावार होती है।
  • सोरमा: इसका रंग सबसे अलग होता है। हल्के नारंगी रंग वाली हल्दी की ये फसल 210 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ प्रोडक्शन 80 से 90 क्विंटल होता है।

हल्दी की खेती और कमाई का गणित भी समझ लीजिए

पिछले कुछ साल में हेल्थ सेक्टर में भारी डिमांड के बाद हल्दी की खेती मुनाफे का सौदा हो गई है। ज्यादातर लोग इसकी खेती में हाथ आजमा रहे हैं। जहां तक इसकी खेती में लागत की बात है, एक एकड़ की खेती के लिए कम से कम 20 क्विंटल बीज की जरूरत होगी, जो 20-25 रुपए किलो के हिसाब से मिलेगा। यानी करीब 40-50 हजार रुपए का खर्च बीज पर आएगा। इसके बाद खेती की तैयारी, ऑर्गेनिक खाद और लेबर कॉस्ट जोड़कर करीब 50 हजार रुपए का खर्चा आएगा। मतलब एक लाख रुपए की लागत से आप इसकी खेती की शुरुआत कर सकते हैं।

7-8 महीने में फसल तैयार हो जाएगी। अगर अच्छी वैराइटी है तो एक एकड़ की खेती से करीब 100 क्विंटल तक हल्दी निकलेगी। अगर इसे 50 रुपए किलो के हिसाब से भी बेचा जाए तो 5 लाख रुपए होंगे। इसमें से लागत को हटा दिया जाए तो चार लाख रुपए का मुनाफा होगा। इतना ही नहीं अगर आप कॉमर्शियल लेवल पर इसकी मार्केटिंग करते हैं, पाउडर बनाकर या किसी ब्रांड के बैनर तले इसकी मार्केटिंग करते हैं तो दोगुना मुनाफा हो सकता है। मार्केट में प्योर हल्दी पाउडर की डिमांड काफी ज्यादा है और कीमत भी अच्छी मिलती है।

कई राज्यों में सरकार भी कर रही है सपोर्ट

मध्य प्रदेश में लहसुन, हल्दी और अदरक की खेती के लिए सामान्य वर्ग के किसानों को लागत का 50% और अधिकतम 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जा रहा है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों को 70% या अधिकतम 70,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की मदद मिल रही है। इसके अलावा दूसरे राज्यों में भी हल्दी की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई स्कीम चलाई जा रही हैं। इसके बारे में ज्यादा जानकारी नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से ली जा सकती है।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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