9 साल की थी जब पिता चल बसे, मां ने खेतों में काम कर पाला, आज अपने पैरों पर खड़ी है होनहार बेटी

रठ में बुलंदशहर के पिछड़े गांव भड़कउ की रहने वाली संगीता की कहानी बताती है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है. संगीता का जन्म एक बेहद आम परिवार में हुआ. जैसे-तैसे घर का खर्च चलता है. माता-पिता ने इस उम्मीद के साथ बेटी को स्कूल भेजा कि वो बड़ी होकर उनका सहारा बनेगी. संगीता ने भी अपने घरवालों को निराश नहीं किया और पूरी तरह से पढ़ाई के लिए खुद को समर्पित कर दिया. वो घीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, इसी दौरान महज नौ साल की उम्र में उनके सिर से पिता का हाथ उठ गया.
पिता के निधन के बाद मां के पास इतने पैसे नहीं थे कि संगीता के स्कूल की फीस भर सकें. ऐसी स्थिति में संगीता ने खेतों में मां के साथ काम करना शुरू किया और अपनी पढ़ाई जारी रखी. हर तरह की बाधा को पार करते हुए वो आगे बढ़ती रहीं. ज़रूरत पढ़ने पर उन्होंने बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया मगर अपनी पढ़ाई को रुकने नहीं दिया. हाई-इंटर में अच्छे नंबरों से पास होने के बाद वो उच्च शिक्षा में भी अव्वल रहीं और एमफिल में गोल्ड मेडल जीतकर परिवार का नाम रोशन कर दिया.
जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में संगीता एनएएस कालेज में शोधार्थी हैं. फेलोशिप में मिलने वाले पैसों से वो न सिर्फ अपनी पढ़ाई कर रही हैं, बल्कि अपने परिवार को भी सहारा दे रहीं हैं. एक समय में मुसीबतों से घिरी नज़र आने वाली संगीता अब अपने इलाके की शान हैं.
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]