एक बेटी कैप्टन, तो एक बनी लेफ्टिनेंट, पढ़ें प्राउड पिता व होनहार बेटियों की प्रेरक कहानी

एक बेटी कैप्टन, तो एक बनी लेफ्टिनेंट, पढ़ें प्राउड पिता व होनहार बेटियों की प्रेरक कहानी

प्रेरणा एक छोटा सा शब्द है, जिसका बड़े से बड़ी परेशानी को दूर करने और बड़े से बड़ी सफलता को पा लेने में अहम योगदान होता है। पिछले कुछ दिनों में भारतीय सेना से भी ऐसी ही कुछ प्रेरणादायक कहानियां सामने आईं हैं। किसी के लिए शहीद पति प्रेरणा बने, तो किसी के लिए रिटायर पिता। किसी के लिए बहन प्रेरणा बनी, तो किसी के लिए सेवानिवृत्त दादा। ऐसी ही एक कहानी है जोधपुर में रहनेवाली दिव्या व डिंपल सिंह भाटी की।

जोधपुर से नवनियुक्त लेफ्टिनेंट डिंपल भाटी को 11 महीने के कठिन शारीरिक और सैन्य प्रशिक्षण के बाद, अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए), चेन्नई की पासिंग आउट परेड में रजत पदक से सम्मानित किया गया। उन्होंने, कोर्स के दौरान 180 पुरुषों और महिलाओं के बीच दूसरा स्थान प्राप्त किया।

भारतीय सेना में तैनात अपनी बड़ी बहन, कैप्टन दिव्या सिंह से प्रेरित डिंपल भाटी को सिग्नल कोर में नियुक्त किया गया था, जिसके बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर में पहली पोस्टिंग दी गई। डिंपल सिंह, 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध में भारत के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले परमवीर चक्र से सम्मानित मेजर शैतान सिंह की पोती हैं। उनके पिता बीएस भाटी, बैंक में अधिकारी हैं और मां होम मेकर हैं। उनका एक छोटा भाई भी है, जो इंजीनियरिंग कर रहा है।

पिता भी बनना चाहते थे सैन्य अधिकारी

26 वर्षीय अधिकारी के गौरवान्वित पिता बी एस भाटी ने एक बातचीत में बताया, “मेरी दोनों बेटियाँ हमेशा सेना में शामिल होना चाहती थीं और पिछले साल मेरी बड़ी बेटी को जेएजी कोर में कमीशन किया गया था और अब वह एक कप्तान है। मेरे बहुत से रिश्तेदार भी रक्षा बलों में हैं और जब मैंने अपनी दोनों बेटियों को किसी और क्षेत्र में प्रयास करने के लिए कहा, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। वे सेना में शामिल होने के फैसले पर अडिग थीं।” डिंपल के पिता ने भी सशस्त्र बलों के लिए परीक्षा दी थी, लेकिन उससे पहले ही बैंक के नतीजे आ गए और उन्होंने बैंक की नैकरी ज्वाइन कर ली।

डिंपल ने बताया, “परिवार में कई लोग सैन्य अधिकारी रह चुके हैं, इसलिए मैं सेना के बारे में अनजान नहीं थी। जोधपुर की जीत इंजीनियरिंग कॉलेज से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने के दौरान मैं लगातार एनसीसी में रही। इसके अलावा, मेरा खेलों में बहुत अधिक रुझान रहा। लेकिन फौजी बनने के बारे में सही मायने में फैसला, बड़ी बहन कैप्टन दिव्या के सैन्य अधिकारी बनने के बाद किया। इसके बाद, मैंने खुद को पूरी तरह से सेना में शामिल होने के लिए झोंक दिया और सलेक्ट होकर ही दम लिया।“

जब हिम्मत छोड़ने लगी साथ

लेफ्टिनेंट डिंपल ने कहा, “7 जनवरी 2021 को हमारी ट्रेनिंग शुरू हुई। सबसे पहला और कठिन मुकाबला तो चेन्नई की उमसभरी गर्मी से था। कुछ दिन तो बेहद उलझन भरे रहे, लेकिन धीरे-धीरे इसके अनुरुप खुद को ढाल लिया। हमारी ट्रेनिंग कई मायनों में अलग रही। 11 माह के दौरान कोरोना के डर से हमें एक बार भी घर तो दूर, परिसर से बाहर तक निकलने की अनुमति नहीं थी। 180 कैडेट्स के बैच में 29 महिलाएं थीं और बाकी सभी लड़के थे। ट्रेनिंग में लड़का-लड़की के बीच कोई भेदभाव नहीं था। ऐसा नहीं था कि लड़की होने के नाते किसी को रियायत दी जाती हो। सभी को एक समान तरीके से अपनी ट्रेनिंग पूरी करनी थी।”

ट्रेनिंग के दैरान एक समय ऐसा भी आया, जब डिंपल को लगा कि अब और नहीं हो पाएगा। तीस किलोमीटर की दौड़ और पीठ पर बीस किलोग्राम का वजन, हिम्मत साथ छोड़ने लगी थी, लेकिन डिंपल की जिद और ऑफिसर बनने के ख्वाब ने उन्हें हार नहीं मानने दी। डिंपल का कहना है कि ट्रेनिंग के दौरान सैन्य अधिकारियों ने बहुत मदद की। उनके मोटिवेशन ने ट्रेनिंग को सही तरीके से पूरा करने में अहम भुमिका निभाई।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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