इनोवेटर किसान ने बनाया 10 हज़ार रुपए में डैम और 1.6 लाख में ट्रैक्टर!

इनोवेटर किसान ने बनाया 10 हज़ार रुपए में डैम और 1.6 लाख में ट्रैक्टर!

आज के जमाने में कुछ भी नया करने वाला अक्सर इसी जुगत में लगा रहता है कि कोई उसके आईडिया कॉपी न कर ले। लेकिन वहीं एक इनोवाटर है जो चाहता है कि उसके आईडिया कॉपी हों और पूरे देश के लोगों तक पहुंचे।

भांजीभाई माथुकिया, एक किसान और एक इनोवेटर- जो न तो कभी स्कूल गये और न ही किसी इंजीनियरिंग कॉलेज, लेकिन आज IIT, IIM के छात्र उनसे आकर अपने प्रोजेक्ट्स में मदद मांगते हैं। उन्हें अपने अनोखे आविष्कारों के लिए देश के राष्ट्रपति से तो सम्मान मिला ही है, साथ ही विदेशों तक जाने का मौका भी मिला है।

रेडियो से पाया ज्ञान

गुजरात में जूनागढ़ से लगभग 55 किमी दूर कालावाड़ गाँव के एक किसान परिवार में जन्मे भांजीभाई बचपन से ही बहुत तेज़ और रचनात्मक दिमाग के थे। आए दिन उनके किए हुए कारनामों को उनके घरवाले और गाँववाले देखते ही रह जाते थे। चाहे फिर वह छोटी-छोटी लकड़ियों को इकट्ठा करके किसी घर का डिजाईन बनाना हो या फिर खेतों में आने वाली समस्याओं को अपने जुगाड़ से हल करना हो।

“कभी स्कूल जाने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने गुजराती भाषा को लिखना-पढ़ना सीखा। बाकी जो कुछ भी दुनियादारी सीखी, उसका ज्ञान रेडियो से मिला। वे हमेशा रेडियो सुनते थे और देश-दुनिया की ख़बरों के अलावा उन्हें विज्ञान और तकनीक पर आने वाले प्रोग्राम भी काफी पसंद थे। आज भी वह अपने ज्ञान का पूरा क्रेडिट रेडियो को देते हैं,” भांजी भाई के पोते अमित ने कहा।

पहला कामयाब इनोवेशन- वनराज ट्रैक्टर

खेतों पर काम करते हुए और किसानों से बात करते हुए, भांजीभाई के दिमाग में तरह-तरह के आईडिया आते थे। उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य रहता कि कैसे वह किसानों के लिए कुछ कर पायें ताकि उनकी तकलीफें कम हो। साल 1990 के आसपास उनके गाँव में एक फोर्ड ट्रैक्टर आया। गाँववालों के लिए यह बहुत नई तकनीक थी, सबको लगा कि यह ट्रैक्टर उनकी मेहनत को कुछ कम कर देगा।

पर भांजीभाई ने जब इस ट्रैक्टर और इसके इस्तेमाल के बारे में गहनता से सोचा तो उन्हें समझ में आया कि बड़े खेतों के लिए तो यह 25 हॉर्सपॉवर वाला ट्रैक्टर फिर भी ठीक है। लेकिन उन किसानों का क्या जिनके पास बहुत कम ज़मीन है और फिर ऐसे किसान, जो लाखों रुपये देकर ट्रैक्टर नहीं खरीद सकते?

किसानों की इस परेशानी के लिए अब उन्होंने हल खोजना शुरू किया। इसके लिए एक कबाड़ी वाले से उन्होंने कुछ पुराने स्पेयर पार्ट्स लिए जैसे कि पुरानी कमांडर जीप का इंजन और पहिये, जिनका इस्तेमाल उन्होंने एक थ्री-व्हील ट्रैक्टर बनाने के लिए इस्तेमाल किया।

इस तरह से उन्होंने छोटे किसानों के लिए 10 हॉर्सपॉवर का ट्रैक्टर बनाया। इस इनोवेशन की लागत उन्हें उस समय लगभग 30 हज़ार रुपये पड़ी।”

अपने इस ट्रैक्टर को उन्होंने सबसे पहले अपने ही खेत में इस्तेमाल किया। उनका इनोवेशन सफल था। लेकिन कुछ महीने बाद ही यह ट्रैक्टर बंद पड़ गया और इसकी वजह थी पुराने स्पेयर पार्ट्स। भांजीभाई के पास एक सफल आईडिया था, बस ज़रूरत थी तो साधनों की। नए स्पेयर पार्ट्स खरीदने में उनके एक दोस्त ने उनकी मदद की और फिर दिन-रात की मेहनत के बाद उन्होंने अपना 10 हॉर्सपावर वाला ट्रैक्टर, ‘वनराज’ तैयार किया। इसकी लागत उन्हें अन्य ट्रैक्टरों की तुलना में 50% से भी कम, लगभग 1 लाख 60 हज़ार रुपये पड़ी।

वनराज की खासियत:

सबसे पहले तो इसका डिजाईन बहुत ही सिंपल था ताकि कोई समस्या आने पर किसान खुद भी इसे रिपेयर करने में सक्षम हों। इस मिनी ट्रैक्टर की एक बड़ी खूबी यह थी कि इसके फ्रंट एक्सेल को ऐसे डिजाईन किया गया है कि ट्रैक्टर को तीन पहिये से चार पहिये वाला और चार पहियों से तीन पहिये वाले ट्रैक्टर में आसानी से बदला जा सकता था।

वह आगे बताते हैं कि चार पहिये वाले ट्रैक्टर खेत में काफी कारगर है। इससे खेतों को जोतना हो या फिर समतल करना हो, सभी कुछ बहुत ही आसानी से कम समय और कम लागत में हो जाता है। बाकी, तीन पहिये वाला मॉडल ट्रांसपोर्टेशन के काम के लिए अच्छा विकल्प है।

वनराज को जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इंजिनियर्स ने टेस्ट किया है और उन्होंने ही इस पर एक सफल आविष्कार होने की मोहर लगायी। साथ ही, उन्होंने कहा कि इसकी मदद से किसानों का खेती पर खर्च बहुत हद तक घटा है।

भांजीभाई अन्य किसानों की मांग पर यह मिनी ट्रैक्टर बनाकर उन्हें देने लगे। अपने ट्रैक्टर के अलावा उन्होंने और 8 इस तरह के ट्रैक्टर बनाए है।

लेकिन फिर साल 1993 में रीजनल ट्रांसपोर्ट अफसर ने उनके ट्रैक्टर को रोक दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। क्योंकि उन्होंने अपने ट्रैक्टर को RTO से पास नहीं करवाया था। दरअसल, भांजीभाई को इन सब चीजों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह तो बस अपने जैसे किसानों की समस्याओं को हल करना चाह रहे थे।

इसके बाद जुर्माना भरके भांजीभाई को छुड़ाया गया। लेकिन इस घटना ने उनके मन को काफी चोट पहुंचाई। उन्होंने अपने ट्रैक्टर का इस्तेमाल बंद कर दिया और इसके बाद किसी और इनोवेशन के बारे में भी नहीं सोचा।

इस बारे में आगे बताते हुए उन्होंने कहा, “उसी साल, IIM अहमदाबाद के प्रोफेसर अनिल गुप्ता जूनागढ़ में अपनी शोधयात्रा के लिए आये और उन्हें ‘वनराज’ के बारे में पता चला। उन्होंने इस ट्रैक्टर का पूरा डिजाईन और इसके फायदे समझे। इसके बाद, उन्होंने ही ‘वनराज’ को पेटेंट करवाने की कोशिशें शुरू की।”

प्रोफेसर अनिल गुप्ता के प्रयासों के चलते साल 2002 में भांजीभाई को उनके इस ट्रैक्टर का पेटेंट मिल गया। हालांकि, अभी तक किसी भी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने उनके पेटेंट को नहीं खरीदा है।

“हमारे पास इतने साधन नहीं है कि हम खुद अपने पेटेंट पर हाई-लेवल के ट्रैक्टर बना सके। इसके लिए किसी बड़ी कंपनी को ही काम करना होगा। लेकिन पता नहीं यह कब होगा?”

इसके अलावा, उनके इस डिजाईन को कॉपी करके बहुत से लोग काम कर रहे हैं। लेकिन भांजीभाई को इससे कोई समस्या नहीं। बल्कि वह कहते हैं, ‘अगर दूसरों के कॉपी करने से मेरा यह डिजाईन देशभर के किसानों तक पहुँच सकता है और उनके लिए हितकर हो रहा है तो कोई दिक्कत नहीं है। क्योंकि हमारा उद्देश्य किसानों की भलाई है।’

कम लागत के चेक डैम

प्रोफेसर अनिल गुप्ता के सम्पर्क में आने के बाद भांजीभाई को अपने आईडियाज़ पर काम करते रहने की प्रेरणा मिली। उन्होंने खुद उनके साथ शोध यात्राओं में जाना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें राजस्थान में ‘तरुण भारत संघ’ द्वारा जल-संरक्षण की दिशा में किये जा रहे कार्यों का पता चला।

गुजरात में भी पानी की समस्या लगातर बढ़ रही थी। घटता भूजल स्तर आज भी परेशानी का सबब बना हुआ है। इसका हल नदियों पर डैम बनाकर निकाला जा सकता था लेकिन इसमें बहुत खर्चा हो जाता। इसलिए भांजीभाई ने ऐसे डिजाईन पर काम किया, जिसकी लागत कम हो और जो जल्दी बनकर तैयार हो जाए।

अपने गाँव से गुजरने वाली धरफाड़ नदी पर उन्होंने मात्र 4 दिनों में सिर्फ चार मजदूरों के साथ मिलकर 10 हज़ार रुपये की लागत वाला चेक डैम बनाया। और यह डैम कामयाब भी रहा।

क्या है उनका डिजाईन

इस डैम के डिजाईन का आईडिया उन्हें एक पुराने रेलवे ब्रिज से मिला। उन्होंने नदी में पत्थरों और ईंटों की मदद से अर्ध-गोलाकार सीमा बनायीं। जब यह सीमा एक मज़बूत हो गयी तो इसके ऊपर उन्होंने 11×15 इंच के कुछ पत्थर लेकर इनसे नदी के बहते पानी में बाँध बनाना शुरू किया। दो पत्थरों के बीच में उन्होंने थोड़ा गैप रखा और इस गैप को बाद में मिट्टी, कंकड़ और सीमेंट की मदद से भर दिया। इससे ये काफी मज़बूत हो गये।

उनके इस चेक डैम से बारिश का पानी बहने की बजाय स्टोर होने लगा, जिससे भूजल स्तर बढ़ा और गाँव के कुंए भी रिचार्ज हुए। नदी के आस-पास के क्षेत्र में हरियाली बढ़ गयी और किसानों को सिंचाई के लिए भी पर्याप्त पानी मिला।

“इसके बाद, हमने वापी में ऐसा डैम बनाया, वहां से कुछ किसान आये थे बुलाने के लिए। फिर राजस्थान के कई गाँवों में इस तरह के कई डैम बनाये। ऐसा करके लगभग 25 डैम का निर्माण हुआ। अभी भी अगर कोई आता है जिसे मदद चाहिए तो हम बिल्कुल तैयार रहते हैं।”

भांजीभाई के इस डिजाईन को समझने और फिर इसे व्यापक स्तर पर इस्तेमाल करने के उद्देश्य से IIT कानपूर के छात्रों का एक ग्रुप भी उनके पास आया। उन्होंने इस डैम को बिना किसी सरकारी मदद के तैयार किया था और दूसरे किसानों को भी सलाह दी कि वे चंदा इकट्ठा करके या फिर मनरेगा के तहत ऐसे डैम का निर्माण अपने गाँवों में कर सकते हैं।

मिले राष्ट्रीय सम्मान

भांजीभाई को उनके इनोवेशन के लिए नैशनल फाउंडेशन ऑफ़ इनोवेशन के ज़रिये सम्मानित किया गया। साल 2002 में पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने उन्हें सम्मानित किया। अमित बताते हैं कि उनके दादाजी के लिए यह सपने जैसा था कि कलाम के हाथों उन्हें सम्मान मिला।

उन्होंने आज भी सारी तस्वीरें सम्भाल कर रखी हैं और अगर उनसे कोई इस बारे में पूछता है तो बड़े ही चाव से बताते हैं। इसके बाद, उन्हें NIF ने ही 2017 में लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा। भांजीभाई दक्षिण अफ़्रीका में हुई कॉमनवेल्थ साइंस काउंसिल में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। साथ ही, वे नैशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन की अनुसंधान सलाहकार समिति (रिसर्च एडवाइज़री कमिटी) के सदस्य भी रह चुके हैं।

बेशक, काबिलियत किसी डिग्री, किसी उम्र की मोहताज नहीं होती और भांजीभाई इस बात का जीवंत उदहारण हैं।

अंत में वह सिर्फ एक बात कहते हैं, “मेरा उद्देश्य हमेशा यही रहा कि मेरा इनोवेशन कम लागत का हो और जो पहले से उपलब्ध चीजें हैं उनसे अच्छा हो। ताकि देश के गरीब किसानों का भला हो।”, देश के इस अनमोल रत्न को सलाम करता है, जिन्होंने अपना जीवन गाँव और किसानों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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