सरकारी नौकरी नहीं लगी तो यदविंदर ने शुरू की हल्दी की खेती; अब लाखों कमा रहे, जानिए पूरी प्रोसेस

पंजाब के रहने वाले यदविंदर सिंह ने मैथेमेटिक्स से मास्टर्स की है। पिता चाहते थे कि बेटा सरकारी ऑफिसर बने। उन्होंने पिता की इच्छा पूरी करने की कोशिश भी की। सालों तक गवर्नमेंट सर्विस की तैयारी करते रहे, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। वे निराश हो गए। इसके बाद उन्होंने नौकरी की तैयारी छोड़ खेती की राह चुनी। ऐसी खेती जो उनकी पहचान बन गई। आज उनके प्रोडक्ट की डिमांड भारत के साथ ही विदेशों में भी है। इससे सालाना लाखों में कमाई हो रही हैं।
यदविंदर कहते हैं कि सरकारी नौकरी की कोशिश बहुत की। कई बार फाइनल स्टेज तक भी पहुंचा, लेकिन बात बनते-बनते रह गई। इसके बाद तय किया कि वक्त जाया करने से बेहतर है कुछ और किया जाए।
पारंपरिक खेती में नहीं हुई आमदनी
वे कहते हैं कि पहले से मन में था कि अगर नौकरी नहीं मिली तो खेती ही करेंगे। साल 2008 में गांव लौट आए। तीन एकड़ जमीन पर पारंपरिक खेती शुरू की। इसमें मन मुताबिक कामयाबी नहीं मिली। वे बताते हैं कि कुछ साल की खेती के बाद यह बात समझ आ गई कि अगर मुनाफा कमाना है तो तरीका बदलना होगा, फसल बदलनी होगी। नए तरीके से रिसर्च शुरू किया। कुछ प्रोग्रेसिव फार्मर्स की स्टोरी पढ़ी। इसके बाद ऑर्गेनिक हल्दी का ख्याल आया।
पहले साल ही मिला दोगुना मुनाफा
यदविंदर कहते हैं कि ऑर्गेनिक हल्दी की खेती तब पंजाब में बहुत कम लोग करते थे। मैंने थोड़े से हिस्से में हल्दी की खेती शुरू की। हल्दी मुनाफे की खेती है। पहले ही साल बढ़िया रिस्पॉन्स मिला। करीब 1.5 लाख रुपए की लागत से मैंने इसकी खेती की थी और बेचने के बाद 3 लाख की आमदनी हुई। इतना ही नहीं बेचने में भी कोई तकलीफ नहीं उठानी पड़ी। जितना प्रोडक्शन हुआ वो आसानी से बिक गया।
खेती का दायरा बढ़ाया तो मार्केटिंग की हुई दिक्कत
पहले साल का मुनाफा से उनका मन खुश हुआ तो खेती का दायरा बढ़ा दिया। तीन एकड़ की बजाय आठ एकड़ जमीन पर हल्दी की खेती शुरू कर दी। इससे प्रोडक्शन तो बढ़ गया, लेकिन साथ ही एक मुसीबत भी बढ़ गई। ज्यादातर प्रोडक्ट बिक नहीं सका। तब मार्केट में उनकी पहुंच उतनी नहीं थी और सोशल मीडिया का इतना क्रेज नहीं था। लिहाजा थोड़ा बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
वैल्यू एडिशन और प्रोसेसिंग पर जोर
प्रोडक्ट के नुकसान की भरपाई को लेकर यदविंदर ने दोबारा रिसर्च करनी शुरू की। फिर उन्हें प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन का आइडिया आया। इसके बाद खड़ी हल्दी से उन्होंने पाउडर बनाना शुरू कर दिया। ‘माझा फूड्स’ के बैनर तले उसकी मार्केटिंग करने लगे।
इसका फायदा यह हुआ कि प्रोडक्ट स्टॉक होने से बच गया और पाउडर की कीमत भी ज्यादा मिलने लगी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा और पूरी तरह प्रोसेसिंग पर फोकस कर दिया। अभी वे हल्दी पाउडर के साथ ही अचार भी बनाते हैं। इससे सालाना लाखों रुपए उनकी कमाई हो जाती है।
हल्दी की कौन-कौन सी वैराइटी होती है
हल्दी की कई वैराइटी होती है। किसी का कलर अलग होता है तो किसी का साइज कम-ज्यादा। वैराइटी के आधार पर प्रोडक्शन और क्वालिटी में भी फर्क पड़ता है। आइए कुछ प्रमुख वैराइटी को जानते हैं…
- सुगंधम: हल्दी की ये किस्म 200 से 210 दिनों में तैयार हो जाती है। इसका आकार थोड़ा लंबा होता है और रंग हल्का पीला होता है। प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल का प्रोडक्शन होता है।
- पीतांबर: हल्दी की इस वैराइटी को Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants (CIMAP) ने डेवलप किया है। यह बाकी हल्दी की तुलना में पहले तैयार हो जाती है। यानी 5-6 महीने का वक्त लगता है। एक एकड़ में 270 क्विंटल तक उपज होती है।
- सुदर्शन: हल्दी की ये वैराइटी आकार में छोटी होती है, लेकिन दिखने में खूबसूरत होती है। 230 दिनों में फसल पककर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल की पैदावार होती है।
- सोरमा: इसका रंग सबसे अलग होता है। हल्के नारंगी रंग वाली हल्दी की ये फसल 210 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ प्रोडक्शन 80 से 90 क्विंटल होता है।
सरकार भी कर रही है सपोर्ट
मध्य प्रदेश में लहसुन, हल्दी और अदरक की खेती के लिए सामान्य वर्ग के किसानों को लागत का 50% और अधिकतम 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जा रहा है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों को 70% या अधिकतम 70,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की मदद मिल रही है। इसके अलावा दूसरे राज्यों में भी हल्दी की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई स्कीम चलाई जा रही हैं। इसके बारे में ज्यादा जानकारी नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से ली जा सकती है।
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]