बाल विवाह के बाद पति ने ऑटो चला कर अपनी पत्नी को बनाया डॉक्टर, लोगों के लिए पेश की मिसाल

पूरी दुनिया में शादी के बंधन को बहुत पवित्र माना जाता है। काफी सालों पहले देखने को मिलता था कि छोटी सी उम्र में ही लड़के और लड़की की शादी कर दी जाती थी यह उम्र वह होती थी जिस समय लड़के और लड़की को अपने भविष्य के बारे में कुछ भी पता नहीं होता था इसके बावजूद एक लड़की ससुराल जाकर अपने पूरे ससुराल वालों को और पति की देखभाल करना उसकी जिंदगी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो जाती थी।
वर्तमान समय में बाल विवाह प्रथा को एकदम से बंद कर दिया गया है लेकिन पहले बाल विवाह प्रथा काफी जोरों पर थी जिसके चलते काफी छोटे छोटे बच्चों की आपसे शादी कर दी जाती थी। ऐसा भी देखने को मिला है कि कुछ लोगों की शादी तो गर्भ में ही कर दी जाती थी। आज आपको एक ऐसी ही दिलचस्प कहानी के बारे में बताते हैं जिसमें बाल विवाह होने के बावजूद एक पति और पत्नी ने अपने जीवन में अलग ही मिसाल पेश की है।
परिवहन कर दी थी बचपन में ही शादी
हम बात कर रहे हैं जयपुर जिले के समोसे तक एक करेली गांव की रहने वाली एक महिला रूपा यादव की, जिनकी शादी मात्र 8 वर्ष की उम्र में कर दी गई थी तब उनके पति की उम्र भी महज 12 साल थी। इतनी कम उम्र में शादी करने के बाद रुपए यादव की जिंदगी में काफी मुश्किलें आ गई थी। छोटी सी उम्र में ही जयपुर के चौमू छेत्र के रहने वाली रुपए यादव की और उसकी बहन रुकमा यादव की शादी दो सगे भाइयों शंकरलाल और बाबूलाल के साथ कर दी थी।
10वीं तक पढ़ाई करने के बाद जब वह ससुराल गई तो दसवीं का परिणाम काफी अच्छा रहा। दसवीं कक्षा में उसने 84% अंक हासिल किए अच्छे परिणाम को देखकर रूपा यादव का जीजा बाबूलाल उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करने लगा।
पति ने ऑटो चला कर अपनी पत्नी को बनाया डॉक्टर
रूपा यादव पढ़ाई में बहुत अच्छी थी इसके बाद उसके जीजा बाबूलाल ने उसे आगे पढ़ने की सलाह दी थी। आपको बता दें कि रूपा यादव के ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। इसके कारण उनकी आमदनी भी कम होती थी। उनके बस खेती ही आमदनी का साधन था।
इसके अलावा पढ़ाई का खर्च बहुत अधिक हो जाता था जिसे उठाना काफी मुश्किल था। तत्पश्चात यह जिम्मेदारी है रूपा के पति ने अपने कंधों पर उठाए और टैक्सी चलाकर अपनी पत्नी के पढ़ाई का खर्चा निकालने लगा।
रूपा ने इसके बाद डॉक्टर बनने का फैसला किया जिसके लिए वह रोज करीब 10 घंटे तक पढ़ाई किया करती थी। कोटा में कोचिंग में काफी अच्छे रैंक हासिल करने के बाद जब उन्होंने नेट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी तो उनकी कोचिंग के निदेशक ने उनकी एमबीबीएस के सारे खर्चे को उठाने का फैसला किया और 4 साल तक उन्हें छात्रवृत्ति देने का भी निर्णय लिया। आज रूपा एक डॉक्टर है और दुनिया के लिए साथ में एक मिसाल भी है।
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]