कैंटीन में बर्तन धोने से की थी शुरुआत, आज कई रेस्टोरेंट्स के हैं मालिक

कैंटीन में बर्तन धोने से की थी शुरुआत, आज कई रेस्टोरेंट्स के हैं मालिक

13 वर्ष का एक छोटा-सा लड़का जो परीक्षा में फेल होने पर पिता के मार से बचने के लिए घर से मुंबई भाग गया और वहाँ जीवन यापन करने के लिए एक कैंटीन में बर्तन धोने का काम करने लगा। वहाँ अपने मेहनत और कठोर संघर्ष से वेटर बना वेटर से मैनेजर और मैनेजर के बाद ख़ुद का बिजनेस शुरू कर दिया। आज इनका बिजनेस देश के साथ-साथ विदेशों में भी फैल चुका है और यह 172 करोड़ रुपए का साम्राज्य स्थापित कर चुके हैं। आज हम अपनें इस कहानी के माध्यम से आपका परिचय इनके इसी सफ़र से करवाने जा रहे हैं।

कर्नाटक के उडुपी के एक छोटे से गाँव करकला के ‘जयराम बनान‘  एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थें जहाँ छोटी-सी गलती पर भी बेरहमी से पीटा जाता था यहाँ तक कि उनके आंखों में मिर्च पाउडर तक भी डाल दिया जाता था।

जब वह 13 वर्ष के थें तो परीक्षा में फेल हो गए थे। उन्हें अपने सजा का अंदाजा हो गया था कि उनके पिता कितने क्रूरता से पेश आने वाले हैं। वह चुपचाप घर जाकर पिता के पॉकेट से कुछ पैसा निकालकर मुंबई की बस में बैठ गयें क्योंकि उन्हें यह पता था कि उनके गाँव के कुछ लोग काम के लिए मुंबई जाते थें। बस में ही उनका परिचय एक ऐसे इंसान से हुआ जिसने उन्हें प्राइवेट कैंटीन में काम करने का ऑफर दिया। उन्होंने बिना कुछ सोचे इसके लिए हाँ कर दी।

कैंटीन में काम करने के दौरान उन्हें काफ़ी यातनाएँ सहनी पड़ती थी। कई घंटों तक काम करने के बावजूद भी वहाँ का मालिक उन्हें चप्पलों से मारता था। परंतु जयराम इससे घबराते नहीं थे बल्कि आगे और अच्छे तरीके से काम करते थें। काफ़ी मेहनत के बाद वह वेटर बनने में सफल हुए और उसके बाद मैनेजर। मैनेजर के रूप में काफ़ी तजुर्बा हासिल कर उन्होंने ख़ुद का बिजनेस शुरू करने का प्लान किया और मुंबई के भीड़-भाड़ से दूर दिल्ली में दक्षिण भारतीय व्यंजनों का भोजनालय खोलने का फ़ैसला किया जहाँ सामान्य दर पर उच्चतम गुणवत्ता वाला इडली डोसा बेचने का सोचा।

 

सारा प्लान करने के बाद 1986 में उन्होंने दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी में ‘सागर’ नाम से अपनी पहली दुकान खोली जहाँ पहले दिन की कमाई मात्र ₹470 की हुई थी। उन्होंने गुणवत्ता वाली भोजन परोसी थी जिसका परिणाम यह रहा कि दूसरे हफ्ते में ही ‘सागर का डोसा’ के लिए लंबी कतार लगने लगी।

 

4 साल के बाद उन्होंने लोधी मार्केट में एक शॉप खोली जो उनके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। उन्होंने अपने में मेन्यूज को 20% ज़्यादा पर बेचना शुरू किया और इसी समय उन्होंने ‘सागर’ में ‘रत्न’ जोड़ दिया और अब यह ‘सागर रत्न’ हो गया।

‘सागर रत्न’ की आज की 30 शाखाएँ उत्तरी भारत में फैलने के साथ ही नॉर्थ अमेरिका, कनाडा, बैंकाॅक और सिंगापुर तक फैल चुकी है। 2011 में सागर रत्न की वैल्यूएशन 172 करोड़ के पास पहुँच चुकी थी। मार्केट में उनके डिमांड और उनके ग्रोथ को देखते हुए उनके विरोधी उनसे काफ़ी जलते थें और अब उन्हें ताने देते रहते थे कि वह टिफिन जैसा खाना देते हैं, जिसके जवाब में उन्होंने ‘स्वागत’ नामक होटल की शुरुआत की। यहाँ कोस्टल फूड्स को शामिल किया गया। उनका यह व्यवसाय भी काफ़ी सफल निकला।

जयराम अपने कर्मचारियों से काम करवाने के साथ ही उनका विशेष ध्यान भी रखते हैं और उनके ज़रूरतों का पूरा ख़्याल रखते हैं। अपने किचन में सफ़ाई को लेकर वह काफ़ी सावधान रहते हैं और यहाँ तक कि एक मक्खी भी नहीं घुसने देते।जयराम बनान अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय के साथ जो मुकाम हासिल किए हैं वह निश्चय ही हर इंसान के लिए प्रेरणा है।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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