प्री बुकिंग से बिकते हैं सूरत के इस खेत में उगे लाल, पीले और सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट

प्री बुकिंग से बिकते हैं सूरत के इस खेत में उगे लाल, पीले और सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट

विदेशी कपड़े और दूसरे प्रोडक्ट्स की तरह, कई ऐसे विदेशी फल और सब्जियां भी हैं, जिसे अपने देश में लोग खूब पसंद करते हैं। पिछले कुछ सालों से हमारे देश में किसान कीवी, ड्रैगन फ्रूट जैसी नई-नई फसलें उगा कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। साथ ही इससे हमारे रोजमर्रा के भोजन में नया स्वाद भी घुल रहा है। किसान इन फलों और सब्जियों को उगाने में भी कई नए प्रयोग कर रहे हैं।

ऐसे ही एक किसान हैं सूरत के ओलपाड तालुका के 68 वर्षीय जसवंत पटेल, जो विदेशी किस्म के फल उगा रहे हैं। पेशे से इंजीनियर होने के बावजूद उन्हें खेती का बेहद शौक था। हालांकि उनके पिता भी सालों से गुजरात में पारंपरिक रूप से उगने वाली फसलें जैसे कपास, ज्वार और मूंगफली उगाया करते थे। लेकिन जशवंत हमेशा से कुछ अलग करना चाहते थे। चूंकि उन्हें खेती का शौक था इसलिए वह इसकी जानकारियां लेते रहते थे।

“खेती में मेरी रुचि पहले से थी साथ ही मेरे पास पुश्तैनी जमीन भी थी। मैं हमेशा सोचता था कि क्या किया जाए जो बांकि के किसान करने से डरते हैं। इससे उनको प्रेरणा भी मिलेगी और हम अच्छा मुनाफा भी कमा सकेंगे।”

फूल की खेती से हुई शुरुआत

नौकरी में रहते हुए ही उन्होंने 2007 में अपने बेटे और एक दोस्त के साथ मिलकर, अपने खेत में ग्रीन हाउस बनवाया था। जिसमें उन्होंने सजावट में उपयोग होने वाले, जरबेरा के फूलों की खेती शुरू की थी। हालांकि उस समय उनके दोस्त ही इसे संभालते थे। ग्रीन हाउस बनाने में उन्होंने हाईटेक तकनीक और साधनों का उपयोग किया था। वह बताते हैं, “उस समय हमारे फूल सूरत से दिल्ली और मुंबई भी जाते थे। हम उसे जारी रखना चाहते थे लेकिन 2012-13 में मार्केट में चीनी सजावटी फूल आने लगे थे और जरबेरा के फूलों की मांग काफी घट गई थी। हमें ग्रीन हाउस को चलाने में काफी खर्चा भी हो रहा था। जिसके बाद हमने ग्रीन हाउस खेती बंद कर दी।”

हमेशा कुछ अलग करने की चाह रखने वाले जशवंत इसी सोच में थे कि अब क्या नया किया जाए? उन्होंने गुजरात के तापमान और मिट्टी को ध्यान में रखकर कई फसलों पर प्रयोग किए। उन्होंने अमरुद के पेड़ भी लगाए थे लेकिन सबसे ज्यादा उत्पादन उन्हें ड्रैगन फ्रूट से हुआ। उस समय इलाके में कोई भी ड्रैगन फ्रूट नहीं उगाता था। बावजूद उन्होंने इसकी खेती शुरू की हालांकि इसमें फायदे के साथ नुकसान की भी संभावना थी।

ड्रैगन फ्रूट पर किए कई प्रयोग

सबसे पहले 2014 में उन्होंने एक नर्सरी से ड्रैगन फ्रूट के 15 पौधे लाकर अपने गार्डन में लगाए थे। उसमें सफल होने और अच्छा उत्पाद मिलने के बाद उन्होंने बड़े लेवल पर इसकी खेती की योजना बनाई और 2017 में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू कर दी।साल 2019 में उन्हें एक एकड़ जमीन पर तकरीबन सात से आठ लाख रुपये का मुनाफा हुआ था। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट का प्रोडक्शन आने में दो साल का समय लगता है।

जशवंत के फार्म पर आपको ड्रैगन फ्रूट की ढेर सारी वैरायटी मिलेगी। इन दिनों उनके फार्म में थाईलैंड रेड के 4000 पौधे, थाईलैंड वाइट के 1500 पौधे, वहीं ड्रैगन फ्रूट की सबसे प्रीमियम वैरायटी गोल्डन येलो के 800 पौधे सहित कुल ड्रैगन फ्रूट के 8000 पौधे लगे हैं।

इनके फार्म में थाईलैंड रेड का प्रोडक्शन इतना अच्छा है कि एक फल तकरीबन 250 से 400 ग्राम का होता है। उन्होंने तीन एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए 1700 पोल बनवाएं हैं। वह एक पोल पर चार पौधे लगाते हैं। हाल ही में उन्होंने वियतनाम से लाकर ड्रैगन फ्रूट की एक नई किस्म उगाई भी है। कई किस्में तो उन्होंने ग्राफ्टिंग के माध्यम से भी उगाई हैं। हालांकि उनका कहना है कि ग्राफ्टिंग वाली किस्में ज्यादा सफल नहीं हुई हैं।

उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट के एक पोल को लगाने में तकरीबन 500 रुपये का खर्च आता है। वही तीन साल बाद एक पोल से 20 किलो फल का उत्पाद होता है। इस हिसाब से वह एक एकड़ में सात से आठ टन का उत्पादन आराम से कर लेते हैं।कीमत की बात करें तो वह ड्रैगन फ्रूट को 200 से 400 रुपये प्रति किलो में बेचते हैं।सूरत और इसके आसपास के कई लोग इनके फार्म पर ऑर्गेनिक तरीके से उगते ड्रैगन फ्रूट को देखने आते हैं। उत्पादन होने से पहले ही इनके पास ड्रैगन फ्रूट की बुकिंग चालू हो जाती है।

खेती में नए प्रयोग के कारण जशवंत न सिर्फ अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि अपने जैसे अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत भी बने हैं। उनके फार्म पर कई किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती की जानकारी लेने आते रहते हैं।जशवंत को खेती में नए और अनोखे प्रयोग करने के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।इसी साल उन्हें गुजरात चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स की और से ‘धरती पुत्र’ का अवार्ड भी मिला है।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Don`t copy text!