ई-साइकिल: पोर्टेबल बैटरी, कहीं भी कर सकते हैं चार्ज, 100 किमी/चार्जिंग की रेंज!

ई-साइकिल: पोर्टेबल बैटरी, कहीं भी कर सकते हैं चार्ज, 100 किमी/चार्जिंग की रेंज!

दिन-प्रतिदिन प्रदुषण का बढ़ना और एयर क्वालिटी का गिरना सबके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। सिर्फ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर ही नहीं बल्कि गाँवों में भी वाहनों का प्रचलन बढ़ने से स्थिति बदलने लगी है। इसलिए अब ज़रूरी है कि हम सब प्रकृति के लिए कदम उठाएं और जहां ज़रूरी है वहीं पर वाहनों का इस्तेमाल करें।

इसके अलावा, कम दूरी वाली जगहों पर जाने का सबसे अच्छा विकल्प होती है साइकिल। लेकिन साइकिल के साथ सवाल आता है समय का कि साइकिल बहुत समय लेती है। पर अगर हम आपको इसका भी समाधान बता दें तो? जी हाँ, आप रेग्युलर साइकिल की जगह ई-साइकिल का इस्तेमाल करें।

एक तो इससे आप ट्रैफिक में नहीं फसेंगे, दूसरा साइकिल चलाना एक हेल्दी एक्सरसाइज़ है और जिस ई-साइकिल की बात हम कर रहे हैं वह एक बार चार्ज करने के बाद 100 किमी तक चल सकती है। साथ ही, इसमें पोर्टेबल बैटरी लगती है, तो आप इन्हें अपने ऑफिस, घर या फिर किसी होटल या रेस्तरां में भी चार्ज कर सकते हैं।

भारत में बढ़ती प्रदुषण की समस्या को समझते हुए, राहिल और रुषद रूपवाला, दोनों भाइयों को पता था कि यहाँ पर ई-बाइक्स एक अच्छा इको-फ्रेंडली विकल्प है। इसलिए उन्होंने नवंबर 2016 में ‘लाइटस्पीड’ नाम से अपना स्टार्टअप शुरू किया। उनकी कंपनी इलेक्ट्रिक साइकिल (ई-बाइक) बेचती है।

यह ई-बाइक बैटरीज पर चलती है और आपको इसमें पेडल करने का विकल्प भी मिलता है। अहमदाबाद में स्थित यह स्टार्टअप अब तक 4219 ई-साइकिल बेच चूका है।

दो भाइयों का सफ़र

33 वर्षीय राहिल ने सिम्बायोसिस से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है और इसके बाद, उन्होंने यूके की कोवेंट्री यूनिवर्सिटी से ट्रांसपोर्ट डिज़ाइन में मास्टर्स की। दूसरी ओर 28 वर्षीय रुशाद ने गुजरात विश्वविद्यालय से बीबीए किया है। उनके पास दो मास्टर्स की डिग्रियां हैं – शेफील्ड विश्वविद्यालय, यूके से मैनेजमेंट में एमएससी और मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया से रिस्क मैनेजमेंट।

“मेरा भाई पहले ही वाहनों के विकल्पों पर एक रिसर्च कर रहा था। हम दिव्यांगों के लिए एक इलेक्ट्रिक चेयर बना रहे थे, जिसे वे वाहन की तरह भी इस्तेमाल कर सकें। हमने एक प्रोटोटाइप भी तैयार कर लिया था लेकिन प्रोडक्शन की लागत बहुत ज्यादा थी। इससे फाइनल प्रोडक्ट की कीमत काफी बढ़ जाती और इसलिए हमें लगा कि यह संभव नहीं हो पायेगा,” रुषद ने बताया। वे इस स्टार्टअप के बिज़नेस डेवलपमेंट और फाइनेंस को सम्भालते हैं।

इसके बाद, दोनों भाइयों ने अलग-अलग जगहों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, जहां कोई भी सम्भावना हो. उन्होंने नीदरलैंड जैसे यूरोपीय देशों में इलेक्ट्रिक साइकिल की सफलता देखी थी।

“हमने सोचा कि भारतीय बाजार के लिए इलेक्ट्रिक साइकिल एक अच्छा फिट होगा। स्टूडेंट इससे कॉलेज जा सकते हैं, जॉब वाले लोग अपने ऑफिस और परिवार के लोग शहर में आस-पास की जगहों पर जाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं,” रुषद ने बताया।

इस तरह से स्टार्टअप का आईडिया उनके दिमाग में आया और उन्होंने बाज़ार की ज़रूरतों को समझने के लिए अपनी रिसर्च शुरू की। फिर दो महीने की लगातार कोशिशों के बाद जून 2016 में उन्होंने अपना पहला ऑफिशियल प्रोटोटाइप तैयार किया। उन्होंने अहमदाबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन के डिजाइनर्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स को मिलाकर एक छोटी सी टीम तैयार की। इन सभी लोगों ने पहले बड़ी कंपनीज के साथ काम किया था।

उस समय उनका स्टार्टअप ‘इंडियम डिजाईन’ के नाम से काम कर रहा था। आधिकारिक तौर पर 17 नवंबर, 2016 को उन्हें रजिस्ट्रेशन मिला और उन्होंने अपने ब्रांड का नाम बदलकर लाइटस्पीड कर दिया।

लाइटस्पीड की ई-साइकिल

उन्होंने जून 2017 में ई-बाइक के अपने दो मॉडल लांच किये। पहला ड्रायफ्ट, जो कि एक एडवेंचर ई-बाइक है और दूसरा, ग्लाइड जो शहरों के लिए अच्छी तरह से अनुकूल है।

“ड्रायफ़्ट और ग्लाइड ई-बाइक खास तौर पर भारत के लिए डिजाईन की गयी हैं। ये ई-साइकिल, फ्रंट शॉक अब्जोर्बर, इमरजेंसी ब्रेक्स के लिए इ-ब्रकर्स, और मल्टी लेवल पेडल बूस्ट टेक्नोलॉजी से लैस हैं,” उन्होंने बताया.

उन्होंने अगस्त में फ़्यूलअड्रीम, क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म की मदद से इन साइकिलों की मार्केटिंग की। जिससे उन्हें पैसे जुटाने में मदद मिली।

उन्होंने आठ शहरों में इन ई-बाइक्स के मॉडल्स की 10 साइकिलें रखीं ताकि लोग इन्हें देख व जांच सकें। इसके बाद, उन्हें 70 ऑर्डर मिले जिन्हें उन्होंने सितम्बर महीने में पूरा किया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने अपनी एक ई-कॉमर्स वेबसाइट भी लॉन्च की है। वे दूसरे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी अपनी ई-बाइक्स ऑफर कर रहे हैं और उन्होंने बाइक बेचने वाले कई मल्टी-ब्रांड स्टोर्स से भी बात की है।

इस स्टार्टअप ने अपनी तीसरी ई-बाइक भी लॉन्च की है- फ्यूरी।

“यह ई-बाइक हट्टे-कट्टे लोगों के लिए और रेगिस्तान जैसे जगहों के लिए है। जिन लोगों को थोड़ी भारी साइकिल पसंद है, वे इसे खरीद सकते हैं,” उन्होंने कहा।

उनकी दो अन्य नयी केटेगरी- व्हिज़ और रश हैं. व्हिज़, परिवार के लिए एक आइडियल ई-बाइक है।

“कोई भी 12 से 65 साल की उम्र वाला व्यक्ति और 5 से 7 फीट की लम्बाई वाला व्यक्ति इसे आसानी से चला सकता है। इसे इस तरह से डिजाईन किया गया है कि किसी को भी इसे चलाने में परेशानी नहीं होगी,” रुषद ने कहा।

दूसरी तरफ, रश एक हाई-एंड ई-साइकिल है और इसकी मांग सबसे ज्यादा है। इस साइकिल के पहिये मैग्निशियम धातु से बने हैं तो इसे ज्यादा रख-रखाव की ज़रूरत नहीं है। उनकी छठी केटेगरी, बम्बूची साइकिल है- यह बांस से बनती है और बैटरी पर चलती है।

इन छह केटेगरी में हर एक केटेगरी के तीन अलग-अलग प्रोडक्ट्स हैं। ई-बाइक के साथ आपको एक चार्जर भी मिलता है, जिससे कि आप आसानी से चार्जिंग कर सकते हैं।

कई इलेक्ट्रिक साइकिलों में रिमूवेबल बैटरी नहीं होती हैं इसलिए आपको पूरी साइकिल को चार्जिंग पॉइंट तक ले जाना पड़ता है, लेकिन लाइटस्पीड अपने दोनों मॉडल्स में एक पोर्टेबल बैटरी देता है। इन बाइक्स को तीन घंटे के सिंगल चार्ज पर 35 किमी से 100 किमी तक चलाया जा सकता है।

लाइटस्पीड अलग-अलग पार्ट्स के साथ एक कन्वर्जन किट भी देता है, जिससे आप किसी सामान्य साइकिल को भी ई-साइकिल में बदल सकते हैं।

चुनौतियां और प्रभाव

पुदुचेरी निवासी डॉ. ब्रह्मानंद मोहंती इस साल अप्रैल से साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं और हर सुबह 30 से 32 किलोमीटर तक साइकिल पर ही सफ़र करते हैं।

“पुदुचेरी के जलवायु में गर्मी और नमी, दोनों ही है तो ऐसे में ई-बाइक यहाँ सूट करती है क्योंकि इससे आप न तो बहुत थकते हैं और न ही ज्यादा पसीना आता है। ई-बाइक पर साइकिलिंग करना काफी आसान है,” 60 वर्षीय प्रोफेसर मोहंती ने कहा। वे एनर्जी, एनवायरनमेंट और क्लाइमेट चेंज के प्रोफेसर हैं। उन्हें पिछले कई सालों पीठ दर्द की समस्या हो रही थी और इससे चलना मुश्किल हो रहा था तो उन्होंने अपने लिए यह ई-बाइक खरीदी।

34 वर्षीय देबोब्रत साहू, किन्सी नाम से एक स्टार्टअप के को-फाउंडर हैं, जो मार्च, 2017 में शुरू हुआ था और ऑरोविल में स्थित है। “हमने देखा कि ऑरोविल में बहुत सारे लोग, युवा और बुजुर्ग साइकिल का उपयोग कर रहे थे। इसलिए, हमने सोचा कि कुछ ऐसा करें जहां लोग ऑरोविल के आस-आस जाने के लिए इलेक्ट्रिक साइकिल हायर कर पायें,” देबो ने कहा।

हालांकि, भारत में ई-साइकिल के लिए वेंडर ढूँढना थोड़ा मुश्किल था। लेकिन इंटरनेट के ज़रिये उन्हें लाइटस्पीड के बारे में पता चला और उन्होंने उनसे बात की। उनके पास फिलहाल 200 ई-बाइक हैं रेंट पर देने के लिए। इनमें से 30 को लाइटस्पीड की कन्वर्जन किट की मदद से ई-बाइक में बदला गया है। उन्होंने ‘व्हिज़’ केटेगरी की साइकिल को भी ट्राई किया है और उसमें कुछ बदलाव की मांग की है। उनका ऑर्डर अगले साल तक उन्हें मिल जायेगा।

“हमने उन्हें बाइक्स को इस तरह से मॉडिफाई करने के लिए कहा है कि लोग उन पर आसानी से चढ़-उतर पायें क्योंकि यहाँ अलग-अलग उम्र के लोगों का ग्रुप है।”

आगे की योजना

अपने अब तक के सफर पर रुषद को काफी ख़ुशी होती है। वह कहते हैं, “जब हमने शुरू किया था तो पता नहीं था कि यह आईडिया काम करेगा या फिर नहीं। हमें बाज़ार का नहीं पता था और नहीं पता था कि लोग इन्हें खरीदेंगे या नहीं।” अपने इस डर से निकलने के लिए उन्होंने बहुत सर्वे किये और अलग-अलग प्रदर्शनियों में गये ताकि पता चले कि लोग आखिर क्या चाहते हैं।

इन सर्वेक्षणों ने उनकी प्रोडक्ट डिजाइनिंग में भी काफी मदद की। लेकिन अब चुनौती काफी अलग है। वह कहते हैं, “इस इनोवेशन को चलाये रखना और बाज़ार में आगे बढ़ना, अब एक चुनौती की तरह है।”

लेकिन लाइटस्पीड अपनी पहुँच बनाने में काफी कामयाब रहा है। 14 शहरों में उनके 18 डीलर्स हैं। इसके अलावा, उनके स्टार्टअप की एक और दिलचस्प बात यह है कि वे किसानों के खेत में उनके फायदे के लिए खुद फलदार पेड़ लगाते हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के सांगली और बारामती इलाकों में ऐसा किया है।

“हम पहले ही इलेक्ट्रिक कार्गो साइकिल पर काम कर रहे हैं ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम से कम हो। हम अपनी बाइक्स के लिए यूरोपियन बाजारों को भी समझ रहे हैं ताकि वहां भी एक्सपोर्ट कर सकें। यह आसान नहीं है लेकिन आगे बढ़ने का अच्छा मौका है,” उन्होंने अंत में कहा।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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