जूते हजारों के हों या लाखों के, इस अस्पताल में होता है सबका इलाज, मिलिए जूतों के इस अनोखे डॉक्टर से

सूरत में एक अनोखा अस्पताल बना है, जहां इंसानों या जानवरों का नहीं बल्कि जूतों का इलाज किया जाता है। इस अस्पताल को चलाते हैं, रामदास और उनके दो बेटे।
साल 2005 से वह सूरत की सड़क पर यह काम कर रहे हैं। अब आप कहेंगे कि ऐसे मोची की दुकान तो हर एक शहर में होती है, इसमें ऐसा क्या खास है?
दरअसल, ख़ास यह है कि रामदास कोई आम मोची नहीं हैं। वह अपने काम के वजह से इतने मशहूर हैं कि सूरत ही नहीं आस-पास के शहरों से भी लोग उनके पास फटे हुए जूतों की मरम्मत कराने आते हैं। आपके जूतों की कीमत हजार रुपये हो या लाख रुपये, टूटने या फटने पर इसका इलाज करके रामदास, जूतों को बिल्कुल नया रूप दे देते हैं।
तभी तो इस अस्पताल में ग्राहकों का ताता लगा रहता है। यहां लेदर जूते, स्पोर्ट्स शूज़ के साथ-साथ ब्रांडेड बैग्स और पर्स की भी मरम्मत की जाती है। रामदास कहते हैं कि उनके पास कई तरह के हाई-फाई ग्राहक अपने विदेशी ब्रांड के लाखों के जूतों की मरम्मत के लिए आते हैं। उन्होंने अपने इस बिज़नेस को और खास बनाने के लिए इसे एक अनोखा नाम भी दिया है। हालांकि उनके पास अपनी कोई दुकान नहीं है, लेकिन उन्होंने ‘जख्मी जूतों का हॉस्पिटल’ नाम का एक पोस्टर लगाया है, जो अब उनकी पहचान भी बन गया है।
सबसे अच्छी बात यह है कि रामदास भले ही सड़क पर बैठकर काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी सोच काफी अलग है। जूते बनाने का काम उन्होंने अपने पिता से सीखा था। वह बचपन से ही यह काम कर रहे हैं और अपने काम से बेहद प्यार करते हैं।
रामदास ने बताया, “मुझे जुते बनाने के अलावा, कोई और काम नहीं आता। आठवीं पास करने के बाद ही मैंने पिता के साथ यह काम करना शुरू कर दिया था। मैंने कभी कोई नए काम के बारे में सोचा ही नहीं, मैं हमेशा यही सोचता हूँ कि जो मुझे आता है, उसमें और कैसे बेहतर बन सकते हैं। दूर-दूर से जब लोग मेरे पास जूते बनवाने आते हैं, तो इसे मैं अपनी सफलता समझता हूँ।”
अपनी इसी सोच के कारण आज वह इतना आगे बढ़ पाए हैं। मूल रूप से महाराष्ट्र के खानगांव के रहनेवाले रामदास, साल 2005 से सूरत में रहकर यह काम कर रहे हैं। इससे पहले, वह नासिक में भी यही काम कर रहे थे। तभी उनके एक दोस्त ने उन्हें सूरत आने को कहा। रामदास बताते हैं, “मेरा दोस्त यहां कपड़ों का काम करता था, उसने मुझे बताया कि गुजरात में लोग महंगे जूते पहनते हैं। यहां काम करने में ज्यादा फायदा हैं। तभी मैंने सूरत आकर काम करना शुरू किया।”
इस शहर में आकर उन्हें सफलता तो मिली ही और अब तो रामदास ने शहर में अपना खुद का घर भी बना लिया है।
वह आज भी बड़ी लगन से यह काम कर रहे हैं, हर दिन उनके पास 10 से ज्यादा स्पोर्ट्स शूज़, वॉश के लिए देते हैं। शहर में जब भी किसी का कोई महंगा जूता जख्मी होता है, तो लोग इस अस्पताल का पता पूछते हुए यहां तक पहुंच जातै हैं।
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