सॉफ्टवेयर की नौकरी छोड़ लौटे बस्तर, तीन गुना बढ़ाई आदिवासी महिला किसानों की आमदनी

सुखदई मौर्य, दशकों से नक्सलवाद की भीषण समस्या से जूझ रहे बस्तर के मुरकुच्ची गांव की रहनेवाली हैं। वह पढ़ी-लिखी बिल्कुल नहीं हैं और अपने तीन बच्चों को पालने के लिए खेती-किसानी का काम करती हैं।
किसी दौर में उन्हें अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी भी जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। शब्दों की कोई समझ न होने के कारण, बिचौलिये उनका फायदा उठा लेते थे।
लेकिन, आज उनकी खेती से आमदनी कई गुना बढ़ गई है और उनका जीवन स्तर काफी सुधर गया है।
वह कहती हैं, “हमारे यहां मक्का, चना, गेहूं, ज्वार, सरसों जैसी कई फसलों की खेती होती है। हमें पहले नाप-तौल का कोई अंदाजा नहीं था और न ही हमें बेहतर बाजार मिलते थे। लेकिन, बीते तीन वर्षों से मैं ‘भूमगादी महिला कृषक’ संघ से जुड़ी हूं। इससे हम किसानों को सही जानकारी मिलने के साथ ही, अच्छा बाजार भी मिल रहा है।”
आदिवासी किसानों के साथ दीना नाथ राजपूत
उन्होंने आगे कहा, “पहले जहां मैं हर महीने किसी तरह, 3000-4000 रुपये कमा पाती थी, वहीं अब 9000-10000 रुपये की कमाई हो रही है। इतना ही नहीं, पहले हमें अपने उत्पादों को बेचने के बाद, पैसों के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता था। लेकिन, अब अनाज बिकने से पहले ही पैसे मिल जाते हैं।”
एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की कोशिश ने बदली लोगों की जिंदगी
दरअसल, सुखदई जैसी छत्तीसगढ़ की छह हजार से अधिक आदिवासी महिला किसानों की जिंदगी में यह बदलाव, 31 वर्षीय दीना नाथ राजपूत के प्रयासों से आया है। दीना नाथ, भिलाई के एक कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग करने के बाद, बेंगलुरु की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम कर रहे थे।
लेकिन, उनकी इच्छा शुरू से ही समाजसेवा की थी। इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ कुछ अलग करने का फैसला किया और मार्च 2018 में ‘भूमगादी महिला कृषक’ नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की।
हालांकि, उनके इस मुकाम तक पहुंचने की राह बिल्कुल भी आसान नहीं थी।
वह कहते हैं, “मैं शुरू से ही सोशल सेक्टर में काम करना चाहता था। लेकिन परिवार के दबाव में, मैंने इंजीनयरिंग में दाखिला ले लिया। साल 2013 में पढ़ाई पूरी होने के बाद, मुझे बेंगलुरु की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी मिल गई। लेकिन, मेरा दिल काम में बिल्कुल नहीं लग रहा था। आखिरकार, सिर्फ तीन महीने में ही नौकरी छोड़, मैं अपने शहर बस्तर आ गया और सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगा।”
दीना नाथ ने दो सालों तक यूपीएससी की तैयारी की और इंटरव्यू राउंड तक भी पहुंचे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
फिर, बेहतर एक्सपोजर के लिए, साल2016 में उन्होंने सोशल वर्क में मास्टर्स करने के लिए दाखिला ले लिया और इसी दौरान, उन्हें मुंगेली जिले में स्वच्छ भारत मिशन के तहत काम करने का मौका मिला। 2018 में मुंगेली को छत्तीसगढ़ का पहला खुले में शौच मुक्त जिला चुना गया।
इसे लेकर वह कहते हैं, “इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद, जिला प्रशासन को पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपए मिले और मुझे जिला पंचायत ने ‘सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी’ का पुरस्कार दिया।”
इस पुरस्कार को हासिल करने के बाद, दीना नाथ की सिविल सर्विसेज में सफल न होने की कसक दूर हो गई और उन्हें एहसास हो गया कि उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए, जो प्लेटफॉर्म चाहिए था, वह मिल गया है।
‘भूमगादी महिला कृषक’ की शुरुआत
दीना नाथ कहते हैं, “मैं बस्तर में ही पला बढ़ा हूं और यहां के लोगों की जिंदगी को करीब से समझता हूं। नक्सलवाद की समस्या होने के कारण, सभी लोग डरते थे कि वे किसानी से कैसे जुड़ें? लेकिन, करीब तीन वर्षों तक सरकारी परियोजनाओं के साथ काम करने के बाद, मुझे अंदाजा हुआ कि अगर लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाना है, तो एक कदम और आगे बढ़ाना होगा।”
इसी विचार के तहत, उन्होंने 2018 में ‘भूमगादी महिला कृषक’ नाम से एक एफपीओ की शुरुआत कर दी।
वह बताते हैं, “हमने भूमगादी शब्द को इसलिए चुना, ताकि स्थानीय लोगों को इससे एक जुड़ाव महसूस हो। भूमगादी का अर्थ है – जमीन पर उगने वाली चीजें और उससे जुड़े लोग।”
कितना है दायरा?
दीना नाथ ने अपने पहल की शुरुआत सिर्फ 337 महिलाओं के साथ की, लेकिन धीरे-धीरे उनका कारवां बढ़ता गया।
वह कहते हैं, “बस्तर एक काफी संवेदनशील क्षेत्र है। जब मैंने अपने एफपीओ की शुरुआत की, तो लोग हम पर भरोसा नहीं जता रहे थे। लेकिन मैंने उनके जीने के तौर-तरीकों में कोई छेड़-छाड़ किए बिना, अपना काम जारी रखा।”
आज दीना नाथ के साथ बस्तर के अलावा, नारायणपुर और कांकेर के 6100 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं। ये महिलाएं ऑर्गेनिक केला, पपीता, उड़द, ब्लैक राइस, रेड राइस, गेहूं, मक्का जैसे तीन दर्जन से भी अधिक तरह के फसली उत्पादों के अलावा आमचूर, इमली सॉस जैसे कई वैल्यू एडेड प्रोडक्ट्स का भी कारोबार करती हैं।
दीना नाथ बताते हैं, “हम महिलाओं को खेती और जंगल से जुड़ी सभी जानकारियां देते हैं और हमने हर पंचायत में एक ‘खरीदी केन्द्र’ बनाया है, ताकि उन्हें अपने उत्पादों को बेचने में ज्यादा दिक्कत न हो। हम उनसे सामान खरीदने के बाद, उसे स्टोर करते हैं और फिर बड़े मार्केट में सप्लाई करते हैं।”
आज उनके उत्पाद दिल्ली, रायपुर, विशाखापट्टनम, हैदराबाद जैसे देश के कई शहरों में जा रहे हैं और स्लोबाजार, रिलायंस फ्रेश जैसे सुपरमार्केट में आसानी से मिल जाते हैं।
इस तरह, खेत से सीधा मार्केट से जुड़ाव होने के कारण, महिला किसानों की आमदनी में बड़ा बदलाव आया है और ‘भूमगादी महिला कृषक’ कंपनी के कुल फायदे में उनकी 30 फीसदी की भागीदारी है।
दीना नाथ कहते हैं, “पहले यहां की महिलाएं नकदी में पैसों का लेन-देन करती थीं। लेकिन इन महिलाओं की ईमानदारी का फायदा, बिचौलिये खूब उठाते थे। वे उन्हें उत्पादों का भाव कम देने के साथ ही, पैसे देने में भी धोखाधड़ी करते थे। लेकिन, हमने सभी महिलाओं का बैंक अकाउंट खुलवाया, ताकि हर लेन-देन एक विश्वास के साथ हो।”
आगे क्या है प्लान?
दीना नाथ ने अपने दायरे को और बढ़ाने के लिए जगदलपुर में ‘बस्तर कैफे’ की शुरुआत की है। इसमें लोग स्थानीय स्तर पर उगे कॉफी से लेकर कई अन्य आदिवासी व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं।
इसके अलावा, वह जल्द ही ई-रिक्शा के जरिए ग्राहकों को होम डिलीवरी की सुविधा भी देने वाले हैं।
वह कहते हैं, “मेरी अभी तक की यात्रा, काफी शानदार रही है। मैं ‘भूमगादी’ को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए, देश के हर जिले में इसकी एक ब्रांच शुरू करना चाहता हूं। इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए, हम फिलहाल एक बहुत बड़े ट्रेनिंग सेंटर को शुरू करने की योजना बना रहे हैं।”
अपने प्रयासों से हजारों महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने वाले दीना नाथ को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
आप भूमगादी के उत्पादों को यहां खरीद सकते हैं।
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]