मिलिए सिक्किम की इस महिला किसान से, 55 की उम्र में सीखी जैविक खेती, कमाई बढ़ी तीन गुना

साल 2014 में, जब सिक्किम सरकार ने राज्य भर के किसानों को पूरी तरह से जैविक खेती से जुड़ने के लिए विशेष अभियान चलाया था, तब गैंगटॉक से तक़रीबन 20 किमी दूर आसाम लिंज़े नाम के एक छोटे से गांव में खेती करने वाली दिली माया भट्टाराईने भी, अपने छोटे से चार एकड़ के खेत को पूरी तरह से जैविक बनाने का फैसला किया।
उस समय उनकी उम्र तक़रीबन 55 साल की थी, उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर इसे एक नए प्रयोग के तौर पर शुरू किया। दिली माया ने खुद ही सरकारी ट्रेनिंग प्रोग्राम के साथ-साथ, देशभर में घूमकर जैविक खेती के तरीकों को अच्छे से समझने की कोशिश की। उनके पति खेत संभालते थे और वह नई-नई तकनीकों की जानकरियां इकट्ठा करती थीं।
वह कहती हैं, “मैंने बचपन से केमिकल वाली खेती ही देखी थी। जैविक तरीकों से खेती करना एक बहुत बड़ा रिस्क का काम था। हमारे पास ज्यादा जमीन भी नहीं थी। लेकिन मुझे बड़ी ख़ुशी है कि जैविक खेती ने हमारे मुनाफे को तीन गुना बढ़ा दिया है।”
साल 2014 में, उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से जैविक खेती की तालीम भी ली। पहले, वह कुछ पारम्परिक सब्जियां जैसे मटर, टमाटर, मूली, धनिया आदि ही उगा रही थीं। लेकिन ऐसी पारम्परिक फसलें इलाके के कई बड़े किसान भी उगाते थे। ऐसे में, दिली को खेती में बिल्कुल फायदा नहीं हो रहा था। फिर जैविक खेती के साथ, उन्होंने नई फसलें और आधुनिक तकनीकों का भी उपयोग करना सीखा। उन्होंने खेतों पर पॉली हाउस बनाकर ब्रोकली, लौकी, खीरा, पालक जैसी सब्जियां उगाना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि बाजार की डिमांड के अनुसार, ऑर्गनिक सब्जियों का भाव काफी अच्छा मिलता है। लेकिन इलाके के ठंड वाले मौसम और खुले खेतों में मौसमी सब्जियों के अलावा, कुछ भी उगाना मुश्किल था।
दिली अपना ज्यादातर उत्पाद, लोकल मार्केट में ही बेचती हैं। वहीं, कुछ हिस्सा वह सिक्किम एग्रीकल्चर सोसाइटी में भी देती हैं। खेती में नए प्रयोगों के कारण, कम समय में ही, उन्होंने अपनी अलग पहचान भी बना ली है। हाल ही में, उन्हें ‘इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च RC NEHR, Umiam, मेघालय’ की ओर से राज्य के प्रगतिशील किसान का अवॉर्ड भी दिया गया है।
वह कहती हैं, “जैविक खेती के कारण ही मेरी आय पहले के मुकाबले तीन गुना बढ़ गई है। ऑर्गेनिक ब्रोकली को मैं 200 किलो के बढ़िया भाव में बेच रही हूँ।”
उनके बेटे मिलु भी नौकरी छोड़कर पिछले चार सालों से अपने माता-पिता के साथ खेती और मार्केटिंग जैसे कामों में मदद कर रहे हैं। इसके पहले, वह देहरादून में पढ़ाई के बाद वहीं नौकरी भी कर रहे थे। मिलु ने बताया, “मेरे माता-पिता दोनों को ही खेती की बढ़िया जानकारी है। जिस तरह से उन्होंने एक सफल फार्मिंग मॉडल तैयार किया है, वह कबील-ए-तारीफ है। मैं भी पिछले चार साल से उनकी मदद कर रहा हूँ। अब हम सोशल मिडिया आदि का उपयोग भी कर रहे हैं।”
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]