सरकारी स्कूल का कमाल, बनाई हवा से पानी निकालने की मशीन

भारत आज भयंकर सूखे का सामना कर रहा है। 2018 में आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में दिल्ली, हैदराबाद बेंगलुरु, चेन्नई जैसे 21 शहरों के पास पीने के लिए अपना पानी नहीं होगा, जिससे 10 करोड़ से अधिक लोगों की जिंदगी प्रभावित होगी।
इतना ही नहीं, आज देश का 40 फीसदी हिस्सा सूखे का सामना कर रहा है और 2030 तक बढ़ती आबादी के अनुसार, पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी। आंकड़े बताते हैं कि 2007 से लेकर 2017 के बीच, भूजल स्तर में 61 फीसदी की कमी आई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी खराब है।
इन्हीं चिन्ताओं को देखते हुए, बिहार के +2 जिला स्कूल, गया के शिक्षकों और बच्चों ने मिलकर, एक ऐसी मशीन बनाई है जो हवा से पानी बनाने में सक्षम है। उनके इस डिजाइन को पेटेंट भी हासिल हो गया है और वे इसे आम लोगों तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।
इस मशीन को ‘एयर वाटर जेनरेटर’ नाम दिया गया है। यह प्रोजेक्ट 2019 में एटीएल मैराथन प्रतियोगिता में पहले स्थान पर भी रहा था और उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों सम्मानित किया गया था।
कैसे आया था आइडिया
स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. सुदर्शन शर्मा ने बताया, “गया एक पहाड़ी क्षेत्र है और यहां पानी की भारी किल्लत है। इस स्कूल में मेरी पोस्टिंग चार साल पहले हुई। फिर, अप्रैल 2018 में अटल इनोवेशन मिशन की शुरुआत हुई और हमें नीति आयोग से कुछ विषयों को चुनने के लिए कहा गया।”
वह आगे बताते हैं, “फिर, हमने शिक्षकों और छात्रों के साथ एक मीटिंग की। जिसमें यह फैसला किया गया कि आज पानी की दिक्कत से सिर्फ गया ही नहीं, पूरी दुनिया जूझ रही है। इसलिए हम इस दिशा में कुछ करेंगे।”
इसके बाद, 40 बच्चों की टीम बनाई गई और डॉ. सुदर्शन ने इस प्रोजेक्ट की बागडोर केमिस्ट्री के शिक्षक डॉ. देवेन्द्र सिंह को सौंपी।
डॉ. देवेन्द्र कहते हैं, “मैं गया में काफी दिनों से रह रहा हूं और यहां अप्रैल से सितंबर तक, फाल्गु नदी के किनारे बसे लोगों को छोड़ कर, सभी को पानी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है।”
वह आगे बताते हैं, “फिर, 2018 में जब अटल इनोवेशन मिशन की शुरुआत हुई, तो उस वक्त हमें स्थानीय मुद्दों को लेकर आठ थीम दिए गए और कहा गया कि यदि हमारा आइडिया सफल होता है तो उसे पेटेंट के लिए भेजा जाएगा। जिसमें हमने हवा और ओस से पानी बनाने के लिए दो अलग-अलग प्रोजेक्ट को चुना।”
वह बताते हैं कि सितंबर 2018 में हुई एटीएल मैराथन प्रतियोगिता में उनके दोनों प्रोजेक्ट को टॉप-100 में चुन लिया गया था। लेकिन, ओस को संरक्षित कर पानी बनाने में उन्हें कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता था। इसलिए वह एक ही प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़े।
वह कहते हैं, “ओस को संरक्षित कर पानी बनाने वाले प्रोजेक्ट के साथ दिक्कत यह थी कि यदि किसी साल बारिश कम होती है, तो ओस भी न के बराबर गिरेगी। इसलिए हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे और हमने सिर्फ हवा से पानी बनाने वाली मशीन के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।”
एटीएल मैराथन प्रतियोगिता में एयर वाटर जेनरेटर को राष्ट्रपति के सामने पेश करते गया जिला स्कूल के छात्र और शिक्षक
हमने कई वीडियो बनाए कि स्थानीय स्तर पर पानी की कितनी दिक्कत है और इस प्रोजेक्ट के जरिए उसे कैसे हल किया जा सकता है। द बेटर इंडिया ने चार बच्चों को पांच-पांच हजार रुपए देने का वादा किया, जिससे बच्चों को खेल-खेल में कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली और उन्होंने हमें टॉप-8 के लिए भेजा। 14 नवंबर 2019 को हमने अपने डिजाइन को राष्ट्रपति के सामने पेश किया और हमारा प्रोजेक्ट पहले स्थान पर रहा।”
देवेन्द्र बताते हैं कि उन्होंने इस एयर वाटर जेनरेटर के पहले प्रोटोटाइप को बनाने के लिए अधिकांश पुर्जों को कबाड़ से खरीदा था।
क्या थी दिक्कत
वह बताते हैं, “हम अपने डिजाइन को राष्ट्रपति भवन में पेश करने से पहले काफी चिंतित थे, क्योंकि मशीन से हर घंटे सिर्फ 200 एमएल पानी ही मिल रहा था। इस तरह एक दिन ज्यादा से ज्यादा पांच लीटर पानी की व्यवस्था हो सकती थी। लेकिन हमारा मकसद था कि इस मशीन के जरिए पांच-छह लोगों के एक पूरे परिवार को पीने का पानी मिले।”
वह बताते हैं कि अंतिम प्रतियोगिता में जाने से पहले उन्हें स्टूडेंट इनोवेटर प्रोग्राम के तहत सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला। इस प्रोग्राम के बाद उन्हें हर घंटे 700 एमएल पानी हासिल करने में सफलता मिली।
इस डिजाइन को बिजनेस का रूप देने के लिए देवेन्द्र की टीम को स्टूडेंट एंटरप्रेन्योर प्रोग्राम के लिए भी चुना गया।
वह कहते हैं, “हमें डेल कंपनी में 12 दिनों की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई जाना था। लेकिन तभी कोरोना महामारी शुरू हो गई। फिर, हमें टैबलेट उपलब्ध कराए गए और हमने इस ट्रेनिंग को ऑनलाइन पूरा किया।”
वह बताते हैं कि इस डिजाइन को अक्टूबर 2021 में भारत सरकार द्वारा पेटेंट मिल गया और फिलहाल इसे बाजार में लाने की योजना बनाई जा रही है।
क्या है खासियत
देवेन्द्र कहते हैं, “हमारा एयर वाटर जेनरेटर 90×30 सेमी के आकार में है। यह मशीन देखने में एक फ्रीज जैसी ही है। यह फिलहाल धातु से बनी है, जिस कारण वजन 34 किलो है। लेकिन आगे हम इसे फाइबर से बनाने वाले हैं, जिससे वजन काफी कम हो जाएगा।”
एयर वाटर जेनरेटर की संरचना
वह आगे बताते हैं, “इससे फिलहाल एक घंटे में 950 से 1000 मिली पानी निकलता है। इस तरह, यदि यह एक दिन में 20 घंटा चलती है, तो 20 लीटर पानी आसानी से हासिल किया जा सकता है। जो पांच लोगों के एक परिवार के लिए पर्याप्त है।”
कितनी होती है बिजली की खपत
वह बताते हैं, “इसमें महीने का खर्च एक फ्रीज चलाने से भी कम आता है। हमलोगों ने एक सर्वे किया कि यदि पांच सदस्यीय परिवार चौबीसों घंटे फ्रीज चलाता है, तो उसमें करीब 122 रुपए का खर्च आता है और करीब इतना ही खर्ज एयर वाटर जेनरेटर को चलाने में आता है।”
वह बताते हैं, “हर जगह बिजली बिल अलग-अलग होती है। इसलिए जगह से हिसाब से इसमें खर्च कम भी हो सकता है। वहीं, मानसून और सर्दी में हवा में काफी नमी रहती है, जिससे एक घंटे में करीब डेढ़ लीटर पानी मिलते हैं। इस तरह साल में करीब आठ महीने बिजली बिल कम ही आएगी।”
पानी नहीं होता है बर्बाद
देवेन्द्र बताते हैं, “छात्रों की मदद से हमने गया के अलग-अलग इलाकों में सर्वे किया कि यहां के कितने लोग आरओ के बेकार पानी का फिर से किसी काम में इस्तेमाल करते हैं, तो नतीजा यह था कि 98 फीसदी लोग उस पानी को यूं ही नल में बहा देते हैं और सिर्फ 2 फीसदी लोग उसका इस्तेमाल बागवानी या किसी अन्य घरेलू काम में करते हैं।”
कैसे काम करती है मशीन
वह बताते हैं, “मशीन के सबसे निचले हिस्से में कंप्रेसर लगा है, जिसे कैपिलरी से जोड़ा गया है। फिर, हमने इस कैपिलरी को कंडेनसर से जोड़ा है। जैसे ही वह हवा को अपनी ओर खींचता है, वहां एक छोटा सा पंखा लगा है, जो उसे वाष्प में बदल देता है। यह वाष्प कैपिलरी पर ऑब्जर्व होता है और बर्फ की तरह जम जाता है।”
वह आगे बताते हैं, “इसमें 20 लीटर का टैंक लगा है। लेकिन पानी को टैंक में जाने से पहले चारकोल और बालू से बने नैचुरल प्यूरीफायर से गुजरना पड़ता है। इस तरह, इसमें आरओ की तरह एक बूंद पानी भी बर्बाद नहीं होता है।”
वह बताते हैं कि यह मशीन टाइमर से लैस है और इसमें ओवर फ्लो का कोई खतरा नहीं है।
पर्यावरण को नहीं होगा कोई नुकसान
देवेन्द्र कहते हैं, “इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने एक सवाल था कि क्या बड़े पैमाने पर इस तरह की मशीनों का इस्तेमाल करने से, ग्लोबल वार्मिंग का खतरा नहीं बढ़ेगा? तो, इस सवाल का जवाब यह है कि यह मशीन वैसे इलाकों के लिए सबसे अच्छी है, जहां सूखे की समस्या है और जमीन का पानी खत्म हो गया है।”
कितना है दाम
देवेन्द्र बताते हैं कि पुणे की एक कंपनी द्वारा इस डिजाइन के दो यूनिट बनाए गए हैं। एक यूनिट को बनाने में करीब 22 हजार रुपए खर्च हुए। लेकिन यदि इसे बड़े पैमाने पर बनाया जाए, तो कीमत 15 हजार से भी कम हो सकता है।
वह बताते हैं, “हम चाहते हैं कि यह आरओ से भी सस्ती हो और आम लोग इसे आसानी से खरीद सकें। यदि इसकी कीमत 15 हजार होती है, तो ग्राहक इस कीमत को एक से डेढ़ साल में वसूल सकते हैं।”
वह बताते हैं, “आज बाजार में 20 लीटर फिल्टर्ड वाटर की कीमत कम से कम 30 से 40 रुपए है। इस तरह महीने में करीब 1000-1200 रुपए का खर्च आता है। जबकि, उसकी टेस्टिंग की भी कोई विश्वसनीयता नहीं है, लेकिन यदि एयर वाटर जेनरेटर का इस्तेमाल किया जाए, तो इस कीमत को एक से डेढ़ साल में वसूली जा सकती है। हम अपने मशीन को सोलर पैनल से भी लैस करने की योजना बना रहे हैं। इस तरह यह और भी अधिक किफायती हो जाएगी।”
[ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. Lok Mantra अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]